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साहित्य-समीक्षा
१. यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन-लेखक डा० परिवारिक जीवन और विवाह खान-पान विषयक सामना, गोकुलचन्द जैन । प्रकाशक सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक रोग और उनकी परिचर्या, वस्त्र और वेषभूषा, पाभूषण समिति अमृतसर । प्रतिस्थान पाश्वनाथ विद्याश्रम शोध प्रसाधन सामग्री, शिक्षा और साहित्य,कृषि-वाणिज्य और सस्थान जैनाश्रम हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी-५, शस्त्रास्त्र इन सभी सास्कृतिक विषयो पर महत्व पूर्ण पृष्ठसख्या ४०४ मूल्य २० रुपया ।
प्रकाश डाला गया है, सास्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से यह प्रस्तुत ग्रन्थ एक शोध प्रबन्ध है जो हिन्दू विश्वविद्या- अध्ययन प्रत्यन्त उपयोगी है। तीसरा अध्ययन ललितकला लय से पी. एच. डी. की उपाधि के लिए अभी स्वीकृत और शिल्प विज्ञान से सम्बद्ध है। इसमे तत्कालीन गीत हुमा है विक्रम की १०वी ११वी शताब्दी के महान वाद्य नृत्य, चित्र कला और वास्तु शिल्पादि का विवेचन प्राचार्य सोमदेव का यशतिलक चम्पू भारतीय संस्कृत है। चौथे परिच्छेद मे १० वी ११ वी शताब्दी के वाङ्मय का एक अमूल्य रत्न है । सबसे पहले डा०हिन्द तत्कालीन भूगोल का चित्रण करते हुए यशस्तिलक मे की ने उस पर 'यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कलचर' नामक प्रागत जनपदो ( नगरो ) ग्रामो, बन पर्वत और नदियो विद्वत्ता पूर्ण प्रथ लिखा था जो जीवराज प्रथमाला प्रादि के स्थानादि का निदेश किया है। शोलापुर से प्रकाशित हो चुका है । इस प्रथ मे यशस्तिलक पाचवे अध्याय मे यशस्तिलक मे प्रागत प्राचीन, की धार्मिक और दार्शनिक दृष्टियो का मार्मिक विवेचन प्रसिद्ध और अप्रचलित ७९१ शब्दों की सूची प्रकारादि किया गया था। इस शोध प्रबन्ध मे सांस्कृतिक तत्त्वो का क्रम से स्थल निर्देश पूर्वक हिन्दी अर्थ के साथ दी गई है। बडो गहराई के माथ चिन्तन किया गया है इसके अध्ययन इस सूची से प्रथ की उपयोगिता अधिक बढ़ गई है। करने से पता लगता है कि इस प्रथ में भारतीय संस्कृति की यशस्तिलक के इस शब्द कोष का उपयोग भाषा को समृद्ध महत्व पूर्ण सामग्री भरी पड़ी है। जिसे विद्वान् लेखक ने बनाने में उपयुक्त हो सकता है। पश्चात् ६ चित्रफलकों उसकी गहराई में पैठकर उसे खोजा है और उसे बडी मे पुरातत्व से प्राप्त सामग्री के माधार पर उस काल मे सुन्दरता के साथ संजोकर महा निबन्ध के रूप में उपस्थित प्रचलित वस्त्रो, ग्राभूषणों, और वाद्यो आदि के चित्र दिये किया है । इस अध्ययन के पाच अध्याय है और एक-एक गये है जिनसे उनका रूप अधिक स्पष्ट हो गया है । अन्त अध्याय मे अनेक प्रवान्तर परिच्छेद भी हैं। पहला मे सहायक ग्रथसूची और शब्दानुक्रमणी भी दी है। इस अध्याय है, यशस्तिलक परिशीलन की पृष्ठ भूमि इसके तरह डा० गोकुलचन्द जी का यह महा निबन्ध यशस्तिलक अर्न्तगत तीन परिच्छेद है, एक मे यशस्तिलक का रचना के सास्कृतिक अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयोगी है। काल यशस्तिलक का साहित्यिक और सांस्कृतिक स्वरूप प्राशा है विद्वानो मे इसका समादर होगा, डाक्टर साहब
और यशस्तिलक पर अब तक हुए कार्य का लेखा-जोखा। इसके लिये वधाई के पात्र है। समाज को उनसे महत्व पूर्ण सोमदेव के जीवन और साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कार्यों की बड़ी प्राशाएं हैं। •प्रशोघर की कथा वस्तु तथा यशोघर के लोक प्रिय चरित छपाई गैटप् और कागज वगैरह प्रथ के अनुरूप है। प्राधार पर रचे गए ग्रथो की तालिका दी गई है जिससे
नका दी गई है जिससे लाइब्रेरियों और पुस्तकालयों में इस ग्रन्थ को मंगाकर ज्ञात होता है कि यशोधर की कथा ने कवियों को कितना अवश्य पढना चाहिये । अधिक भाकृष्ट किया है।
जैन साहित्य का वृहद इतिहास भाग ३-लेखक डा. दूसरे अध्याय में यशस्तिलक कालीन सामाजिक जीवन. मोहनलाल मेहता अध्यक्ष पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोधसस्थान, की चर्चा है, इसके अन्र्तगत १२ परिच्छेद है, जिनमें हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी, प्रकाशक-उक्त शोध तत्कालीन वर्ण व्यवस्था, समाज गठन, पाश्रम व्यवस्था संस्थान । मूल्य पन्द्रह रुपया।