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अनेकान्त
युद्ध के पात्रों का व्यवस्थित व्योरा जितना जैन एक असंगति माती है । बौद्ध परम्परा के अनुसार उदायीपरम्पग देती है, उतना बौद्ध परम्परा नही। चेटक तथा भद्र का जन्म उसी दिन हुआ, जिस दिन श्रेणिक का ६ मल्ल की, : लिच्छवी, अदारह गणराजाओं का यत्कि- शरीरान्त हुआ', जबकि वजिरा का विवाह भी श्रेणिक की चित् विवरण भी बौद्ध परम्परा नहीं देती।
मृत्यु के पश्चात् हुआ। वैशाली-विजय में छद्म-भाव का प्रयोग दोनों ही मत्यपरम्पग ने माना है । जैन परम्परा के अनुसार युद्ध के दो
कूणिक (अजातशत्र) की मृत्यु दोनो परम्परामो मे भाग हो जाते है :
विभिन्न रूप से बताई गई है। १. पखवाडे का प्रत्यक्ष युद्ध और २. प्रकार-भंग।
जैन परपरा मानती है-कूणिक ने महावीर से पूछा
चक्रवर्ती मर कर कहाँ जाते है ? उत्तर मिला-चक्रवर्ती इन दोनो के बीच बहुत समय बीत जाता है । डा०
पद पर मरने वाला सप्तम नरक में जाता है। गधाकुमुद मुखर्जी की धारणा के अनुसार यह अवधि कम-मे-कम १६ वर्षों की हो सकती है। बौद्ध परम्परा
"मै मर कर कहाँ जाऊँगा?" के अनुसार वस्सकार लगभग तीन वर्ष वैशाली में रहता "तुम छठे नरक में जानोगे।" है और लिच्छवियों में भेद डालता है। इस सबमे यह
"क्या मै चक्रवर्ती नही हु ?" प्रतीत होता है कि बौद्ध परम्परा का उपलब्ध वर्णन
"नही हो।" केवल युद्ध का उत्तरार्घ मात्र है ।
इस पर उसे चक्रवर्ती बनने की धुन लगी। कृत्रिम रानियां और पुत्र
चोदह रत्न बनाये । पखण्ड विजय के लिए निकला।
तिमिस्र गुफा मे देवता ने रोका और कहा-"चक्रवर्ती ही जैन परम्परा में कणिक की तीन रानियो के नाम
इम गुफा को पार कर सकता है और चक्रवर्ती बारह हो मुख्यतया आते है-पद्यावती', चारिणी' और मुभद्रा । पावश्यक चूणि के अनुमार कणिक ने ८ राजकन्यानो के
चुके है।" कृणिक ने कहा-"मै तेरहवा चक्रवर्ती हूँ।" माथ विवाह किया था, पर वहा उनका कोई विशेष परि
इस अनहोनी बात पर देव कुपित हुआ और उसने उसे
वही भस्म कर दिया। चय नहीं है। बौद्ध परम्परा मे कणिक को गनी का नाम वजिरा
बौद्ध पररपरा बताती है कि उदायीभद्र ने राज्यपाता है । वह कोशल के प्रसेनजित् राजा की पुत्री थी।
लोभ से उसकी हत्या की। कुणिक के पुत्र का नाम जैन परम्परा मे उदायी और
इस विषय में दोनो परपरामों की समान बात यही है बौद्ध परम्परा मे उदायीभद्र आता है। जैन परम्परा के कि कूणिक मर कर नरक मे गया। जैन परम्परा जहाँ अनुसार यह पद्मावती का पुत्र था और बौद्ध परम्परा के तमः प्रभा का उल्लेख करती है, वहाँ बौद्ध परम्परा लोहअनुमार वह वजिरा का पुत्र था। वजिरा का होने में कुम्भीय नरक का उल्लेख करती है" । कुल नरक जनो के १. हिन्दू सभ्यता, पृ. १८६
६. प्राचार्य बुद्धघोप, सुमगलविलासिनी, खण्ड १, पृ १६७ २. "तस्स ण कृणियम्स रन्नो पजमावई नामं देवी......" ७. जातक अट्ठकथा, खण्ड ४, पृ. ३४६; Encyclo
-निरयावलिक मूत्र, (पी. एल. वैद्य सपादित), पृ. ४ paedia Buddhism, 317. ३. "तस्स ण कणियस्म रण्णो धारिणी नाम देवी ......" ८ स्थानाग मूत्र वृत्ति, स्था. ४, तथा उ० ३ तथा प्राव
-औरानिक मूत्र (सटीक), सूत्र ७, पत्र २२ श्यक चूणि, उत्तरार्ध, पत्र १६७-७७ । ४. वही, सूत्र ३३, पत्र १४४
९. महावंश ४-१ ५. आवश्यक पूणि, उत्तरार्ध, पत्र १६७
१०. दीघनिकाय अट्ठकथा, खण्ड १, पृ. २६७.३८