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अनेकान्त
का मास भी न काटना पडे मोर रानी को यह अनुभव पिता का वध होता रहे कि राजा के कलेजे का मास काटा जा रहा है जैन परम्परा के अनुसार कुणिक किसी एक पर्व-दिन
और मझे दिया जा रहा है । बौद्ध परम्परा के अनुमार पर अपनी माता चल्लणा के पास पाद-वन्दन करने के लिए वैद्य के द्वारा बाहु का रक्त निकलवा कर दोहद की पूर्ति गया। माता ने उसका पाद वन्दन स्वीकार नही किया। की। दोहद-पूर्ति के पश्चात् रानी इस घटना-प्रसग से
कारण पूछने पर माता ने श्रेणिक के पुत्र-प्रेम की घटना दु.खित होती है और गर्भस्थ बालक को ही नष्ट-भ्रष्ट
सुनाई और उसे उस दुष्कृत्य के लिए धिक्कारा। कुणिक करने का प्रयत्न करती है। बौद्ध परम्परा के अनुसार वह
के मन में भी पितृ-प्रेम जागा। अपनी भूल पर अनुताप ऐसा इसलिए करती है कि ज्योतिषी उसे कह देत है
हा । तत्काल उसने निगड काटने के लिए परशु हाथ मे यह पितृ-हतक होगा। जैन परम्परा के अनुसार वह स्वय
मे उठाया और पित-मोचन के लिए चल पडा । श्रेणिक ने ही सोच लेती है कि जिसने गर्भस्थ ही पिता के कलंजे का
मोचा- यह मुझे मारने के लिए ही पा रहा है। अच्छा मास मागा है, न जाने जन्म लेकर वह क्या करेगा?
हो, अपने आप में प्राणान्त कर लू। तत्काल उसने तालपूट श्रेणिक का पुत्र-प्रेम
विष खाया और अपना प्राण-वियोजन किया। जन्म के अनन्तर जैन परम्परा के अनुसार चल्लणा
बौद्ध परम्परा में बताया गया है कि धूम-गृह में उसे अवकर पर डलवा देती है। वहाँ कोई कुर्कुट उसकी
कोशल-देवी के सिवाय अन्य किसी को जाने का आदेश कनिष्ठ अगुली काट लेता है। अगुली से रक्तश्राव हाने
नही था। अजातशत्रु गजा को भूखा रखकर मारना लगता है। राजा श्रेणिक इस घटना का पता चलते ही
चाहता था, क्योकि देवदत्त ने कहा था-पिता शस्त्र-वध्य पुत्र-मोह से व्याकुल होकर वहा आता है, उसे उठा कर
नही होता; अत उसे भूखा रख कर ही मारे । कोशलरानी के पास ले जाता है और रक्त व मवाद चुस-वस
देवी मिलने के बहाने उत्मग में भोजन छिपाकर ले जाती कर बालक की अगुली को ठीक करता है। बौद्ध परम्परा
और राजा को देती। अजातशत्र को पता चला तो उसने के अनुसार जन्मते ही राजा के कर्मकर बालक को वहा स
कर्मकरी को कहा-मेरी माता का उत्सग बाध कर मत हटा लत है, इस भय से कि रानी कही इसे मरवा न डाल ।
जाने दो। तब वह जूडे मे छिपा कर ऐसा करने लगी। कालान्तर से वे उसे रानी को सौंपते है। तब पुत्र-प्रेम से
उसका भी निषेध हुआ, तब वह स्वर्ण-पादुका मे छिपा कर रानी भी उसमे अनुरक्त हो जाती है। एक बार अजात
ऐसा करने लगी। उसका भी निगंध होने पर रानी गन्धोशत्र की अगुली में एक फोडा हो गया । व्याकुलता से रोते बालक को कर्मकर राजसभा मे राजा के पास ले गए। दक से स्नान कर अपने शरीर पर चार मध का पावले
। पोडा फट गया। कर राजा के पास जाती। राजा उसके शरीर को चाटपुत्र-प्रेम से राजा ने वह रक्त और मवाद उगला नही, चाट कर कुछ दिन जीवित रहा। अन्त मे अजातशत्र ने
माता को धूम-गृह में जाने से रोक दिया। अब राजा प्रत्युत निगल गया।
श्रोतापत्ति के सुख पर जीने लगा। पिता को कारावास
पितृ-द्रोह के सम्बन्ध से जैन परम्परा कहती है, कुणिक अजातशत्रु ने जब यह देखा कि राजा मर ही नही के मन मे महत्वाकाक्षा उदित हुई, और अन्य भाइयो को रहा है, तब उसने नापित को बुलाया और आदेश दिया अपने साथ मिला कर स्वय राज्य सिंहासन पर बैठा तथा -"मेरे पिता राजा के पैरो को शस्त्र से चीर कर उनपर निगड़-बन्धन कर श्रेणिक को कारावास मे डलवा दिया। नून और तेल का लेप करो और खैर के प्रगारो से उन्हे
बौद्ध परम्परा के अनुसार अजातशत्रु देवदत्त की पकायो। नापित ने वैसा ही किया और राजा मर गया। प्रेरणा से महत्त्वाकांक्षी बना और उसने अपने पिता को अनुताप घूम-गृह (लोह-कर्म करने का घर) मे डलवा दिया।
श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् कुणिक का अनुतापित