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भनेकान्त
नमिऊण तिलोयरवि जगवल्लह जलहरं महावीरं। तो प्रकाशित हो चुका है पर मेघविजय ने इस ग्रन्थ की बुच्छामि प्रग्धक कहियं जिणवरिषेण ॥२०६
प्राकृत गाथानों के भी उद्धरण दिए हैं। भद्रबाहु की रचना कत्तियपूनमदिवसे कत्तियरिक्वं च होइ संपुन्नं । प्राकृत भाषा में होनी चाहिए, अत: इस प्राकृत भद्रबाहु ता चत्तारि वि मासा होइ सुभिक्खं सुहं लोए ॥२०० संहिता की खोज अत्यावश्यक है। यहाँ मेघमहोदय मे सुरगुरु रविसुय घरणिय, जइ एकस्थ मिलति । .... उद्धृत भद्रबाहु संहिता की प्राकृत गाथाएं दी जा रही हैं :भूमिकबाले मंडिया, भारी भीख भमन्ति ॥१४२ जह वक्क परवि सुमो विसाहमहमूलकत्तियारूढो।
यदाहः श्रीभद्रबाहु गुरू पादाःअन्नं कुणा महग्धं इक्कं निवई विणासेई" ॥१४२ रेहाहि कित्तियाइ अट्ठावीसं पि ठवह पंतीए । तिथिकुल के विशेषः
निप्पाइऊण ताहि सत्तहि नाडीहिं महभोई ॥६० तिम उत्तरा य अद्दा पुणवत्र रोहिणी य जइ कहवि ।
नाडीह जत्थ चंदो पावो सोमोय तत्थ जइ दोवि । हुति किर पुणिमाए तम्मासे जाण दुम्भिक्खं ॥१२२
तो तहिं जाण बुट्टी इय भासइ भद्दबाहु गुरू ॥६१ फग्गुण पुष्णिमदिवसे पुम्बाफरगुणि हविज्ज णक्खत्तं ।
एसोवि य पुणचंदो संजुत्तो केवलोव जइ होइ । चत्तारि वि पुहरामो ता चउरो माससुभिक्खं ॥२५३
केवलचन्दो नाडीइ ता नियमा दुद्दिणं कुणइ ॥६२ बे पुहरा अहव महाणक्खत्तं होइ कहवि देववला।
एयाणं पि य मजझे अमियाइ तिए जलासयो अहिमो। ता जाणइ दुवे मासा होइ महग्धं ण संदेहो ॥२५४
तुरियाए वायमिस्सो सेसासु समीरणो पहिलो ॥६३ मह पुण्णा तद्दिवसे होइ महारिक्खयं जया कहवि ।
जइ सव्याण वि जोगो गहाण अमियाइ तिगे अनावुट्ठी। चत्तारि वि मासा खलु ता जाणह विडरं काल ॥२५५
अट्ठार १८ वार छुदुहिण सेसासु फल जहापत्तं (?) ॥६४
बिजला विवाउनाडी देइ जलं सोमखहरबहुजोगा। मह पुणिम दो पुहरा पुग्वाफग्गुणी हविज्ज णक्खतं । उरि उत्तरफग्गुणी दो पुहरा होइ जइ कहवि ।।२५६
जलनाडी तुच्छजलं पावाहिय जोगग्रो देइ ॥६५ ता पढमा दो मासा होइ सुभिक्खं सुहं न संदेहो।
जइ वाउनाडीपत्ता सणिभोमा किमवि नहु जलं दिति । वो उरि पुणो मासा सस्सविणासेण दुक्कालो ॥२५७
सोमजुमा तेउ जलं अइसय जोएण परिसंति ॥६६ प्रट्ठ पहरा चउरो महवा जइ होइ उतरा जोगो। विसमपर कुभमीणा सीहो कक्कडय विच्छियतुलामो । सस्साणं ता हाणी रसाण तह तिल्लवम्वाणं ॥२५८
सजलामो रासीमो सेसा मुक्का वियाणाहि ॥६७
रविसणिभोमसुक्का चंदविढप्पो य बुहगुरू सुक्को। तिथिपयन्ना (प्रकीर्णक) नामक एक रचना का उल्लेख
एए सजला णिच्चं णायन्वा प्राणुपुटवीए ॥६॥ तो जिनरत्नकोश में प्राप्त होता है। तिथिकुलक उससे
-इति भद्रबाहुसहिताया भिन्न है या एक है इसका निर्णय तो तिथिपयन्ना में उपरोक्त गाथाएं प्राप्त है या नहीं यह खोजने पर ही मेघ महोदय के पृ० ३७ मे भद्रबाहु के नामसे निम्नोक्त आधारित है।
बात सस्कृत श्लोक मे कही गई हैजैसा कि पहले कहा गया है मेघमहोदय एक बहुत
क्रूरसंयुक्तसूर्येन्द्रोग्रहणे नृपतिक्षयः । ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसमे अनेको ग्रन्थो का उल्लेख है।
राष्ट्रभङ्ग इति प्राहुर्भद्रबाहमुनीश्वराः ॥२०१॥ जैनेतर मेघमाला आदि का भी उपयोग किया गया है।
उपलब्ध सस्कृतभाषा की भद्रबाहु सहिता में इस एक विशेष उल्लेखनीय ग्रन्थ की चर्चा भी यहाँ कर देना
__ आशय का कथन है या नही, अन्वेषणीय है। आवश्यक है कि भद्रबाहु सहिता नामक ग्रन्थ सस्कृत का
मेघमहोदय मे गौतम स्वामी भाषित राशिमडल पृष्ठ
१९६ से २०६ में दिया गया है। और पृ० ५०७-५०८ में १ अर्धकाण्ड का चातुर्मासकुलक के नाम से उल्लेखित इति गौतमीय ज्ञानं श्लोक ७९५ तक में दिया है। यह किया जाना विचारणीय है।
(शेष पृष्ठ ४८ पर)