Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 622
________________ ३५६ रयणभूयं अंगसुत्ताणि शब्दसूची रयणुच्चय १६१, १६२. सम०१।२६, ३०; २।८; ३।१३;४।१०; रयणसंचया [रत्नसंचया] ठा०२।३४१,४१३४८;८७४ ५५१४; ६।६ ; ७।१२; ८।१०; ६७, १२; १०६; रयणसिरि [रत्नश्री ] नाया० २।१।६० ११।८; १२।१२; १३।६; १४।६; १५।८; १६।८; रयणा [रत्ना] ठा०४।३४८ १७।६, ११; १८।६; १९६६; २०१८; २११५; २२।४; रयणागर [रत्नाकर] भ० ३।२६८. पण्हा० ३७ २३१५, २४१७; २५।१०, २६॥३, २७१७, २८७ रयणामय[ रत्नमय ] ठा०४१३३६,३४०,३४४,१०।१०३. २६।१०; ३०१८, ६; ३१।६; ३२।७; ३३१५; ४१।२; सम० प्र० १४८, १५०. भ० २।११८; ११११५६; ७६३१; ६६७; प्र० ४४, ४६, ५२, ५३, ६८, ७२, १६६१, १०४, १०५; ५६।६८ १४१, १४४, १४८से १५०,१५६, १८३. भ० ११२११, रयणावलि [रत्नावलि] भ०६।१६०.नाया०१।१।१२८. २१२, २१६ से २२२,२२४से २३१, २३४, २३५,२३७, अंत० ८७ से ६, १२, २०, २७ २३८, २४१, २४२; २७५, ११७, १२१, १४६ से रयणावली [रत्नावली] आ० चू० २।२४; ५।२७. भ. १५२; ३७६, ८१,२४६;४।३; ५१६२,२१६;६।१२०, ११११५६ १२२, १३७,१४४,८।७,२०, २८, १८७, २२४,२२५, रयणि [रत्नि] आ० चू० १५।२६. ठा० ११२५०. सम० ३६०, ३६१, ३६३, ३६५, ४००, ६८७ से १०१; ७।३; ६।४; प्र० १६६. भ० ६।१३४;७।११६; ६।४०, १०८५, ६६; १११६२,१२।६७,१३४ से १३६,१३८, ६२; २४।१०६, १०७, ११३,२०६,२४०,३०८,३१०, १५६ से १६१,२११ से २१३, २१६; १३।१ से ७, १४ से १७, २७, ३७, ४२ से ४७, ५०, ८८, १२१, १२४, रयणि [रजनि] भ०२।६६, ६७; ३१३३,३६,१०२,१०४; १४६; १४।४०, ४१,६०,६३, १४७, १४८;१५।१८६; १२।१५; १५५१२६, १६८ १६।११५; १७४२, ६५, ६७,६६, ७०, ७२, ७४,७६, रयणिकर [ रजनीकर[ पण्हा० ४।८ ७८, ८०; १८१२००; २०१४३, ४४, ४६, ४८ से५० रयणिखेत्ता रजनिक्षेत्र] सम० २७१६, ७८।६८८७, २४१६, ७, २७, २८,३०, ३१,३३, ३४, ३८, ३६,४१, ८, ९८५, ६ ४२, ४४, ४५,४७, ४८, ५०, ५१, ५३, ५६, ५७,६२, रयणियर [रजनिकर] नाया० १११।१७, १५६ ; शरा ६३, ६६, ७२, ७६, ७८, ८१, ६४, ६५,१०६, ११८, रयणी | रत्नी] ठा० २।३८६; ३।१३८,४।६३६ ५।२२७; १३३, १४१, १६७, २०३, २३८, २३६, २४२, ६।१०८; ७७६, १०६ से १०६; ६।५६. नाया० २श्रु० २५३, २६०, २६४, २६६; २५।४०, ४८, ५०,६५, १व०३० ११८; ३१॥६, २०, २१, २४; ३२।४; ३४१२, ४ से रयणी [रजनी] आ० ० ४।१६; १५।१०, ११. ठा० ७,६ से ११,१३, २०,२३,४३,५१, ५६,६४; ४११४६. ४।१८१; ५२५५; ७।४५।१, ४६।१; ६।६२. सम०प्र० नाया० १११६।३१. उवा० ११६६,७६, ७६८।३७,४१, १६३. भ० १०॥६५, ६७,१११५६. नाया० ११११२४, ४३,४६. विवा० १११।५७, ७०, ११२।६६, ७३, १५३से १५५, २०४; १।२।१२, १७, ३७,५२,१।३।६, ११३१६५; १।४।३२,३६११५।२६११६॥३७; ११७।३८% २१; ११५।११३; ११७।६,२२; ११८।२६, ५१,१७५; शा२७; १९५६; १।१०।१६ १११३।१५१।१४।२५, ५०, ६४;१।१६।६३, ६४,८८, रयणभूय [रत्नभूत] नाया०१।१।१०६,१०७,१४५,१५४; १०४, ११८, १५३, १५६ से १५८; २।१७, ३८,५८, १२।२०, ३०. अंत० ३।६८, ६८ ६०. उवा० ११५७,६५; २।५४, ३।५१; ४।५१,५१५१; रयणवडेंसय [रत्नावतंसक] भ० ४।३ ६।३६; ७।१२; ८।३६, ६।२४; १०।२४.अंत०३।६४, रयणवास [ रत्नवर्ष ] ठा० ६।६२ १०८. विवा० ११७।१६,२३ रयणवासा [ रत्न वर्षा ] आ० चू० १५।१० रयणुच्चय [रत्नोच्चय] ठा०८।६८।१. सम० १६।३।१. रयणसंचय [रत्नसंचय] ठा० ८।६८।१ नाया० १।१।२६।१ ६०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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