Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 652
________________ वाणस्सइकाइयत्ता अंगसुत्ताणि शब्दसूची वण्णनाम ७७; २०११००, १०८, ११०, ११५,११८,२४।१८१, ५२, ५६, ६८; १५।२८. सू० ११६।११, १२, १३, २२८, ३००, २५।१६, १०७,१०८; २६।२७,५५; २।१।१५, ५२, २।२।३६, ६०, ६६, ७३; २।३।२ से ३०।२७, ३४,३३।१,४,८, ११, १३, १५, १६. १८ १००, ठा० ११२३४, २४७; २।३८५, ४३८ से ४४१; से २०,३४,४०,४२,४७,५०,५४, ५६३४११,५, ३।१३७, ४।१३५, ६३८, ५॥३, २३, २६ से ३१, ६, ८, ९, १३,२३, २४, २६, २८, ३२ से ३६, ४२ १३४, १७४, २२५, २२८,८।१० ।६२; १०११६, से ४४, ५५, ६३; ३५।११; ४१३१५ १०३, १७८. सम० २२॥३; ३०।१।३३, ३४।१; प्र० वणस्सइकाइयत्त [वनस्पतिकायिकत्व] भ० ७।६३; ६६, १४१, १४३, १५०. भ० ११७४, ७६, १००।१, १२।१३४, १३५, १३६, १४२, ३४।८, ६, १७ ३५७; २।४,४५, ४७, १२५ से १२६; ३।१०६,२६८; वणस्सइकाइयत्ता [वनस्पतिकायिकता] ठा० ६६; ४।८।१; ५।१७२, १७८; ६८२, १०२, १६३से १६५, ६८, १२ १६६; ७।११६; ८।३६ से ३६, ४२, ६७,६८, ७८, वणस्सइकाय [वनस्पतिकाय] आ० चू० ११६७,२।४१, ४६७, ४६८, ६।१६०; ११११७, ७८ से ८१, १०८, ४२; १५।४२. सू० २।१।५६; २।२।४०; २।३७७ से १३३, १३६, १३७, १६१, १२।१०२ से ११६,१२३, ८१; २।४।१४. सम० ६॥२. भ० १॥४३७; ११८३; १२८१४१४४,५०; १०२६ से २८,३३ से ३५,४०, ६।१५० ४२, ४६, ८६, ६६, १५६% १६६१, १८।१०७ से वणस्सइकायअसंजम [वनस्पतिकायासंयम] सम० १०६; १६६८, ८६, १०७, १०८; २०१२१, २६ से १७११ ३६, ३५११०%, ४०।१. नाया० १११।१८, २२, ३३, वणस्सइकायसंजम [वनस्पतिकायसंयम] सम०१७।२ ५७, ५६, ६०, ७१,७६, ८६, १६५; १२१४, ६७, वणस्सइकाल [वनस्पतिकाल] भ० ८।२०४, ३६६ से ७६; ११३१९११।२११८७२, ७३,७५,७८,७६, ४०२; १२।१६२, १६६ ६३, २३४; १।८।३० से ३२, ४६, ७६, ६२, २०३; वणस्सइसरीर[वनस्पतिशरीर] सू० २।३।२ से १०० १।१०।२, ४, ६।१; १११२।३ से ५, १२ से १४, १६, वणस्सतिकाइय [वनस्पतिकायिक ] ठा० ३।६१,४१३६६; १६, २०; १।१४।८४;१।१५।११; १।१६।१५५,१६४; ____॥१४०, १४१. भ० ११।३२ १११७।१४।१ से ३; १११८१४८, ६०, ६१, ६२।५. वणिमग वनीपक] आ० चू०१५।१३ उवा० २।४०,४५. अंत० ११८; ३।६३, ६।१३.पण्हा० वणिय [वणिज् ] सू० १।२।५७; २।६।१६, २१, २२. भ० १११३; ४।४।५।३; ७।१४ ; ६८, ६; १०।१५, १७ १५५८५ से ६७. नाया० ११९५४११; १।१७।३७।१ वण्णअ [वर्णक] अंत० १११, १०, ११,१५, १६, ३४, वणीमग [वनीपक] आ००११२१,४२,४३,४६,१४७ ५,११४, ११५; ४१५; १४१,६।७३ ; ७।४,५८।५,६. ३।२ से ५,५१२०, ६।१६,१०६.ठा० ५२२००.नाया० अणु०३१५७. विवा० १११ १।१३।२१; १।१४।३८, ३६; १।१६।६२, ६३. अणु० वण्णओ [वर्णतस् ] भ० ८।३६ से ३६, ४२; १८।२००. ३१२२, २४. पण्हा० १०७ नाया० ११५॥१०; १।१५।४ वणीमय [वनीपक आ० चू० १११६, १७, २१७, ८, ३६, वण्णग[वर्णक] सू०२।२।५८,६३,७१ ३७, ३६, ४०, ५६, १०, ६८, ६ ७,८3,६७, ११, १३, १८; १३।१०३. नाया० १११।२४, ५३; ८; १०८ १।१३।१४. उवा० ११६०२।१६, ४०,४५, ३११६%; वणीमया[वनीपकता]पण्हा० ६।१२ ४।१६।५।१६; ६।३४;७।५५८।२६।९।१६; १०१६ वण्ण[वर्ण] आ० ८।८।२३. आ० चू० २।२१, ५३; श२३, वण्णगपेसिया वर्णकपेषिका] भ० १९।३४ ३१, ३३;६।२३, ३३, ३६७।१८१३।६, १५, २२. वण्णगपेसी [वर्णकपेषी] भ० ११११५६ ३१, ४३, ५२, ५६, ६८; १४।६, १५, २२, ३१, ४३, वण्णनाम [वर्णनामन् ] सम० २५।६२८।५; ४२।६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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