Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 781
________________ सूतिक्त सुणिसंत आगम शब्दकोश सुदसण सुणिसंत [सुनिशान्त ] आ० ८।३. आ० चू० २।३६, सुतवित [सुतप्त] पहा० ४।४ ३७, ३६ से ४२ सुति [शुची] सम० ३२।१।२. पण्हा० ६१३ सुणी [शूनी] सू० १।३।८ सुति [श्रुति] भ० १५।५१. पण्हा० २०१६ सुणेत्ता [श्रुत्वा] सू० १।५।६. ठा० ३।२८५ सुतिक्ख [सुतीक्ष्ण] भ० ६।१३४११. पहा० १।२६ नाया० ११८।२२६. अंत० १११६. विवा० १११।१६ सतितिक्ख [सुतितिक्ष ] ठा० ५।३३। सुणेत्तु [श्रुत्वा] सू० १।८।१४ .. सुत्त [सुप्त ] आ० ३।१. आ० चू० ७।२१. सू० २।४।४ सुणेमाण [शृण्वत् ] नाया० १।१६।२७१ से ७,१७. ठा०५।१२५ से १२७, १६४.भ० १२१५४, सुणेयव्व [श्रोतव्य] पण्हा० ६।८ ५६, ५८. नाया० ११११८८; १।३।८. विवा० श२१७ सुण्ण [शून्य] पण्हा० २।४; ३।२३ सुत्त सूत्र] आ० ६।६०. आ० चू०१५।२८. सू०१।४।४६; सुण्णगार [शून्यागार]आ० ६।२।३ १११४१२६, २७, २।६।१६. ठा० ३।३४४, ४६३; सुण्णघर [शून्य गृह] सू० १।२।३५. पण्हा० ८६ ४।१२०, १३१, ५।४८, ४६, २२३, २२४;७.६, सुण्णय [शून्यक] सम० प्र० ६४ ७; १०।१०४।१. सम० २२।२ से ५; २६।१; ३३।१; सुण्णागार [शून्यागार] सू० १।३।३७, ३८. ठा० ८८१२; प्र० ६०,१००, ११०, १११. भ० ५।९७; ५।२१, २२ ८।२६६; ६।१४१; ११११३८; १६१७७ से ८०, ८२; सुण्हत्त [स्नुषात्व] भ० १२।१४५, १४६ २५६७११. नाया० ११३।१०. उवा० ११४७; ७१३३. सुण्हा [स्नुषा] आ० २।२, १०४. आ० चू० ११२५, विवा० ११६।१८, २३; ११८।१६ ४६, ६३, १२१, १२२, १४३, २।२२, २५, ३६, सुत्त[श्रुत] ठा० ६।१३ । ५१, ६४; १८; ६१७. सू० १।४।१३; सत्तओ[सूत्रतस् ] नाया० ११११८५; १।१६।३०६ २।११६६; २।२।७, १२, ५०, ५८, ७८, ७६. ठा० सत्तखेडा सत्रखेल] सम० ७२।७. नाया० १११८५ ३।३६२, ४।४३४. भ० ८।२३५; १२।३०. नाया० सुत्तग[सूत्रक ] सू० १।४।४३. भ०१६।९५ ११३।२४; ११४।१८; १७५, ६, ६, १०, २२, २५, र भ० ११११३३; १६७७ से ८०. २६, २६, ३३, ३८, ४१, ४२; ११७४४।११; नाया०१।१।१८.अंत०१।१७; ३३११६. विवा०२।११२५ १।८।१५४; १।१४।७१, १११६।२००, २०३, २७२. सुत्तत्त [सूप्त त्व] भ०१२।५३, ५४ अंत० ६१५५. विवा० ११३।१४. सुत्तत्थपाढय [सूत्रार्थपाठक] नाया० १।१।२५ सुत [श्रुत] ठा० ४१३४ सुत्तपडिकुट्ट [ सूत्रप्रति क ष्ट] पण्हा० ८६ सुत [श्रुत ] सू० १।८।१८. ठा० ३।४०७; ५।१२४; सुत्तपरिवाडि [सत्रपरिपाटी] सम० २२।२; ८८।२; ६१३२, ३३, ८।२१, १११; १०.१२. सम० प्र० १११ प्र०२६१ सुत्तरुइ [सूत्र रुचि] ठा० ४।६६ सुतअणाणि [श्रुताज्ञानिन् ] ठा० ८।१०६ सुत्त (रुइ) [सूत्ररुचि] १०।१०४ सुतंग [श्रुताङ्ग] सम० प्र० २६१ सुत्तरुयि [सूत्ररुचि भ० २५॥६०६ सुतत्त [सुतप्त ] सू० ११५।१७ सुत्तसुयधम्म [सूत्रश्रुतधर्म ] ठा० २।१०८ सुतवस्सि [सुतपस्विन् ] सू० १।४।१२; १।६।३३; सुत्थिय [ सौवस्तिक] शाक का नाम,उवा० १।२६ १।१०।३; १।४।४६; १।१४।२६, २७, २।४।४ से सदसण [सुदर्शन] सू० १।६।६, १४. ठा० २।३३०; ७, १७; २।६।१६ ५।५६; ८।६७।१; ६।३६।१; १०१११३।१, १३६. सुतवस्सित [सुतपस्थित ] ठा० ३।५०७ सम० १६।३।१; प्र० २२०१३, २२३।३, ४, २३४।१, सुतवस्सिय [सुतपस्विक] सम० ३०।१।२१ २४१।२, २४३।१, २५६।२. भ० १११११५ से ११६, सूत ७६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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