Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 696
________________ वीहिया अंगसुत्ताणि शब्दसूची वेश्य वोहिया [वीथिका] नाया० ११११७६; १।८।२१६ १००, १०३, १०५, १०८, ११२, ११७,१३१,१३३, वुइय [उक्त] आ० ६।१।२१ १५०,१५३, १८३; १६१६१,६२,७१, १८।१४४, वुक्कंतव्युत्कान्त] आ० चू० १।१०० १७३.नाया० १११।२१, २६, ३६, ४१,४३, ४९, बुग्गह[व्युद्ग्रह] ठा० ५।२२४. पण्हा० ४।२ ५१, ५६, ६२, ६५, ७७, १०७, ११३, १२३, १२६, बुग्गहट्ठाण [व्युद्ग्रहस्थान] ठा० ५।४८ १४२, १४६, ११२।३२, ३८,४६, ५३, ६६,११५१३, वुग्गहपट्ट [व्युद्ग्रहपृष्ट] ठा० ६।१११ २३, २४, २६, ३१, ५६,६८, ७१,११५, १२३,१२४; वुग्गाहित [व्युद्ग्राहित] ठा० ३।४७८ ११८६३,८६,१००,११३, १३७, १४५, १५४, १५६, वुग्गाहेमाण [व्युद्ग्राहयत् ] भ० ६।२३४, २३५,२४०, १६५, १९६; १।१२।६, १७, १११४।१३, ३६,४४, २४३; १५३१४१. नाया० १।१२।१८ ५४; १११५७,१०,१११६।१७,४३,४८,४६, ६४ वुच्च [वुच्] -वुच्चइ, आ० चू० १६।१०. भ० १।३४. ८६, ६८, २००, २१६, २३२, २४४, २४५, २६५, नाया० १।५।७३. उवा० ७.४५. अंत० ५।१३. अणु० २८२, २८८, २६८; १।१८।५२, ५५; १।१६।२५,३१, ३१५६ ३५, २।१।२५. उवा० ११४६,४८,७६, ८०; २।२३, वुच्चमाण [उच्य मान] सू० १।६।३१. भ० २।२६, २८ २५, २६, ३१, ३५, ३७,४५, ३।२२, २४, २८, ३०, वुच्चः [उक्त्वा ] सू० २।२।७७ ३४, ३६, ४०, ४२,४४, ४१२२, २४, २८, ३०, ३४, वुच्छेयण [व्युच्छेदन ] ठा० ६।४२११ ३६, ४०, ४२, ४४; १२२, २४, २८, ३०, ३४, ३६, वुज्झमाण[उह्यमान] आ० ६।१०५. सू० १।११।२३ ४०, ४२, ४४, ६।२४,२८; ७।११, १७,१८,३४,५८, वुट्ट [वृष्ट] आ० च० ४११७.ठा०६।६२. सम०प्र०२३०।२. ६०, ६४, ६६, ७०, ७२, ७६, ७८, ८०८।३०, ४१, भ०७।२०५; १५।२६ से २८, ३३ से ३५,४० से ४२, ४२, ४६.अंत० ३।६६, ७३, ७५. अणु ० ३।२. विवा० ४६, ५०, १५६, १६०, १६६. अंत० ३।६३ १११।३८; १६१८ वुट्टि [वृष्टि ] भ० ३।२५३, २६८ वुत्तपडिवुत्तय [उक्तप्रत्युक्तक] अणु० ३।१७ वुटिकाइय [वृष्टिकायिक] भ० १४१२२ वृत्तपडिवुत्तिया[उक्तप्रत्युक्तिका] भ० ११।१६६ वुट्टिकाय [वृष्टिकाय] भ० १४।२२ से २४ वुत्थ[उषित] नाया ०१।८।१८०१ वुड्ड [वृद्ध] सू० १।२।१७; १।१२।१८; १।१४।७, ८, वुद्धिकर[वृद्धिकर] सम० १०१७ २।३।७६ से ८१. नाया० १।८।१५४; १।१६।२००. वुप्पाएमाण [व्युत्पादयत् ] भ० ६।२३४, २३५, २४०, पण्हा० ८६ २४३. नाया० १।१२।१८ वुडसावग[वृद्धश्रावक] नाया० १।१५।६ वुयमाण[ब्रुवत् ] भ० ३।११४ वुड्डि [ वृद्धि] आ० ३।२६. सू० ११७।६. ठा० २।२५५; । बुसित [व्युषित ] सू० १।१।८६ १. सम०प्र० १७१।१ वुसीम [वृषिमत् ] सू० १।८।२०; १।११।१५; १।१५।४ वुड्डिकारि[वृद्धिकारिन् ] नाया० १७।४४।१४ वूह [व्य ह] सम० ७२।७; प्र० ६०. भ० २।३०।६।१५७; वुत्त [उक्त ] आ० ६।४७. आ० चू० १।१२१, २।२५, ३८. ११।१६४. नाया० १६१।१६, ८५ सू० १११।४२, ६६, ८०; २।४।३२।६।२०७२।७।१३, वेआवच्च [वैयावृत्य] ठा० ४।१०० १७, २०, २१, २६. ठा०१०६७।१.सम०प्र०२३४१२, वेइज्जमाण वेद्यमान] पण्हा० ३।२३ २५११५, २५४१२, २५८१७. भ० ३।११०; २८२ वेइय[ वैदिक ] ठा० ३।३६६, ३९८ ७११७५, १८४, २०१; ६।१४०, १५६, १६१, १६५, वेइय | वेदित ] स ० २।२।१६. भ० १११८, १८।१, ३३१४८ १८५, २०३, २१२, २३२; १०१४६; ११११५०,१६५; या० ११११४०, ७४, १२६% ११२।२८ १२।३४, ३६; १३।१०६; १५६४, ६८, ८४, ६७, वेइय [वेगित ] नाया० १।१६।२६०, २७५. पण्हा० ८।२ ६०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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