Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 706
________________ संकेय अंगसुत्ताणि शब्दसूची संखेज संकेय[सङ्कत] भ० ७।३४।१ संखसमय[सांख्यसमय] नाया० ११५१५२, ५३, ५६ संकेयग[संकेतक] ठा० १०।१०१।१ संखा [संख्या] आ० ६१८०; ८।८।२. सू० १३१४११८; संकोडण[संकोटन] पण्हा०३।११ २७।१३. ठा० १०।११६. सम० प्र० २६१ संकोडिय [सङ्कोटित] सू० २।२।५८. पण्हा० ३।१३. संखाए[संख्याय] आ० ६।४३. आ० चू० १।३२ विवा० १।६।२३ संखाण [संख्यान] ठा०४।५०५;६।२८।१।१०।१००.भः संख [शज] आ० चू० ११।४; १५॥१२, १३, २८।१६.० २।२४, ६।१३७; १५।१०१ ११६।१६; २।१२५०; २।२।३४, ५८, ६३, ६४,७१. संखादत्तिय [संख्यादत्तिक] सू० २।२।६६. ठा० ५॥३५. ठा० २।३२५, ३४० ; ४।३३०,७१४२।१,७५;८।४१।१, भ० २५१५६६. पहा०६।६ ७१; ६।२२।१,१०,६०, ६२. सम० ४२।३; ४३।४; संखाय[संख्याय आ० २१५०. सू० १।२।२३ ५२।३,५७।३,५८।४; ८७।३;८८।५; प्र०६२,२२३।४, संख लग [ शङ्खवत् ] नाया० १।८।७२ २४१, २५२।१. भ० ३।३३, १०२; ५।६४; ८।२३२; संखावत्ता शंखावर्ता] ठा० ३।१०३ ६:१७५, १८२,१६६,११।५६, १५६,१६०; १२।१।१, संखित्त [संक्षिप्त] ठा० ३।३८६. भ० १६; २।१०६, ४ से ८, १० से १५, १८, १९, २२, २६ से २८%3; ११८, ५२५५; ७।३; ६।१२२; ११४६८; १३१६०; १३।१०३;१८।१०६, १४७, २२३. नाया०१।१।३३, १५॥६, ६६, ७०, ७६, १७७. नाया० ११११४,६; ६१, ६२, ११०,१११, १३५, १५६; ११२३५, ४५; १।१६।१२. उवा० १३, ४, ६६. विवा० १।२।१२; ११७।३४; ११८।२७,३६,१०१,१०७से ११३; १।६।५; २।१४२० . ११६।६,१६८, २५६, २५७, २७१, २७३, २७५ से सं ११११४३ २७७; १।१८।३३, ३८, ५६. पण्हा० २।१२, ३।५; संखिया [शाङ्गिका] भ० ५।६४ ४।४,५,७,८; १०११ संखुब्भमाण [संक्षुभ्यमान] नाया० १८७० संख[सांख्य] नाया० ११५१५५ म०प्र०६६ संखडि[दे० ] आ० ६।१।१६. आ० चू० १।२६ से २६, ३१ संखेज्ज [संख्येय] ठा० २।१८६. सम० प्र० ८६ से ६६, से ३५, ४२, ४३ १३१, १६४. भ० ११२१८, २२०; २।१३१, १४६ से संखतल[सङ्घतल] भ० १५।१७२ १५१; ३।४, ६, १४, १२०, १२१; ५।२२२; ६।७४, संख (पत्त) [शङ्खपात्र] पण्हा० १०।१४ ६१, १२५, १३२,८।६२,८३, ६३, ६४, ३५२,३५५, संख (पाय) [शंखपात्र आ० चू० ६।१३ ३५७ से ३५६, ३८३, ४०३, ४०६, ६६८,६६,१०१; संखपाल[शंखपाल ] ठा० ४।१२२ ११॥३, ३३, १२८, १८०; १२।७८, ७६,८४,८५, संखबंधण[ शंखबन्धन] आ० चू० ६।१४ ६०,१८३; १३।२ से ७,१२ से १७, २६, २७, २६ संखय [संस्कृत] सू० १।२।४३, ६४ से ३७, ६८, ६६, ८०, १४।८१, २०।१३, ३५, संखवण [शंखवनभ०११११७४,१८०, १८५, १८६, ७१, ७३, ६८, १०२, २११२; २३।१; २४१८, ५४ से १६५. उवा० ५।२, ७, १०, १५ ५७, ६२, ६३, ६६, ७२,७६, ७८, ८०,६२ से ६६, संखवण्ण[ शङ्खवर्ण] ठा० २।३२५ १०५, १०६, ११६, १२१, १३१, १३२, १३५,१३६, संखवण्णाभ[शङ्खवर्णाभ ] ठा० २।३२५ १४०, १४५, १५२, १५३, १५८,१५६, १७०,१७३, संखवाल [शंखपाल] ठा० ४।१५४; १०।५६. भ० १८४, १६५, १६६, २००, २०७,२१०, २४७,२५३, ३।२७३ २६१से २६३,२६६, २७३, २७४, २७६, २६६,२६६, संखवालय [शङ्खपालक]भ०३।२६४,७१२१२,८।२४२; ३०३, ३०५, ३१६, ३१६, ३२०, ३२३, ३३०,३३३, १८।१३४ ३४२, ३४५, ३५०, ३५४,२५।१३ से १६, ३४, ३८, ६६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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