Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 734
________________ समइय अंगसुत्ताणि शब्दसूची समण समइय [सामयिक ] ठा० ३३५२६; ८।११४. भ० १४॥३; विवा० १।१७० २५।६२७ ; ३४।२ से ५, ७ से १७, १६, २२, २४ से समज्जिय[समर्जित ] भ०११।११०; २०१०५ से १२२ ३०, ३२; ४००६ समजोगि [समयोगिन्] भ० २५४४,५ समउउय [समर्तुक] अंत० ३।३८ २।४७; २७।१६. भ० ११४४,६०, समं [समम् ] सम० १६।३ ६२, ६४, ६६, ६८, ७०, ७२, ८४, ८६, ८८, ६०, समंत [सामन्त] सम० ३४।१ ६२, ६४, ६६, १८, २००, ३४६, ३४८, २१३६,४४, समंत [समन्त] अंत० १३१४; ६।४३ ६७, १३० से १३२, ३७६,८०, ६३, ६६, १४४, समंतओ [समन्तस्] पण्हा० १।२६; ३७ १६४, १८८, १९४; १३८,८६, ८६ से ६१,६५,९६, समंतय [समन्तक] नाया० १३१६।१८५ १०८, ११०,११५, १५४, १५७, २४८; ६।३,७६, समंता [समन्तात् ] ठा० ३।३६७, ५२५; ४।३३६; ७७, ८२ से ८४,६३, ६४, ६६ से १०१, १३८,१३६, ५।१०२; १०।१०३. भ० ११२५७; २।११८; ३३४६, १४२ से १४५,१४७से १५०, १५८,१५६,१६३,१६६, १४८; ७।११७, १५६,१८८; ६७; ११११०६, ११०, १६८, १७३, १८७; ७।६, ७, ७४,७६,७६, ८२,८५, ११२; १३३८७, ६६; १४।१०६; १५।१६, २३,५१, ८८,६०,११२,१४६ से १४६, १५६, १६७, १७०, ५३, ६०,८७, ८८, ६५,१६।६१. नाया० १११।३३, १७१, २१६, २२०; ८।२२३, ६।४७,४८; १०।२४, उवा० ५।३६. अंत० १११२; ६।४३. विवा० १।२।३३ २५, ३१,३२, ३६, ५१, ६७; १११८३, १११,११२, समकप्प [समकल्प] सू० १।३।४८ १८२, १६३; १२।२७,५१, १३२,१३१८६,८७,६०% समकम्म [समकर्मन् ] भ० ११६२, ६३, ८८, ८६ १४।३, ३२,३६, ३७,५५,५७, ६०, ११२; १२१३२, समकिरिय [सम क्रिय] भ० ११७०,७१, ८०, ८४,८५, १३७, १५२; १६।५१, ५४, ११८, १२५; १७।२०, ६६, ६७, १०१।१ ३२, ३४, ३७, १८६६, ८६, १४२, १४६, १५१, समक्ख [समक्ष ] नाया० ११७।४४१३ १७८,१८०, १६१ से १६५,२२३, १६।१३,१४,२३, समखेत्त [समक्षेत्र] ठा० ६७३ ३८ से ५४,२०११, ३, ६४,६६, ३५१५८, ६४,६६; समग [समका ठा०५।२१३।१।। ३६।१०, ४०।२८, ३४, ३६,४५,४११६ से८,१४,२४, ] भ० १११६१, १२८. नाया० १०८।२८, २७, २८, ३१, ३४,८२. नाया०१।१।२०५११५४६१; ६७,१।६।४,६,१।१६।१४२,१४३,१४५,१।१८।२४. १७।२२; ११८।४२, १४४, १५२, १५४; १।१२।३; पण्हा० ३।४ १।१६।५२,२००,२७२. उवा०११५३,२१४५, ६।२८; समचउरंस [समचतुरस्र ] ठा०६।३१; ७७६; ८।४३; ७।१७,५०. अंत० ३।३२. विवा० १११।३६ ६।५६. सम०प्र० १६५, १९६, १९८. भ० ११६; समण [श्रमण] आ०२१४१; ४।२०। ६।६६; ८।२१,४१; ६।६०; १४।८१; १५६; १९६०, ६२; २४१६०, ११।१६।२।४।६।३।४,५,६।४।११. आ०चू०१।१६, १२१, २१०, ३०८. नाया० १२११६; शमा२३४; १७,२१, २४, ३२,४२, ४३, ४६, ५५, ५७,५८, २।१।१६. उवा० ११४,६६.पण्हा० ४१७; ।२ १०१, १२१, १२७, १३०,१३५, १४७; २१७, ८,२५, समचउरंससंठाणनाम [समचतुरस्रसंस्थाननामन्] ३६ से ४०, ३२ से ५, १७ से २१, २४, २५,४४,४५, सम० २८.५ ४६,५१, ५३ से ५८, ६१, ५९,१०,२०,२२ से २४, समज्जिण [सं+अर्ज ]-समज्जिणइ,विवा० १।१।७०. ४६ से ४८,५०,६८, ६, १६, २१ से २६,५४ से५६, –समज्जिणिसु, भ० २८।१. ५८,७।१,२४; ८७, ८,६७,८; १०८,६; १५॥१, समज्जिणमाण [समर्जत् ] विवा० १३१३५१ ३, ४, ७ से ११, १३ से ३६, ३८, ४० से ४२. सू० समज्जिणित्ता [समय॑] सू० १।५।२७. नाया० १॥६॥४. १११।६, ३७, ४१, ५६, ६३, ६७; १।२।१६,२६,४२; ७१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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