Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 716
________________ संपली अंग सुत्ताणि शब्दसूची २०४; १४।१०६. नाया० १।१।२०६; १।१६।२१ संपली [ सं+प्र + ली] - संपलिति, सू० १|१|३४ [ प्रविष्ट ] ० २।२।१०. भ० ३।१२७, १२८. उवा० ८१४२ संपवेव [सं+प्र + वेप् ] – संपवेवए, आ० चू०१६।३ संपद [ संप्रव्रजित ] आ० चू० ७।३ संपव्वयमाण [ संप्रव्रजत् ] आ० ५। ६६. ठा० ६३ संपसारय [संप्रसारक ] आ० ५।८७. सू० १ २५० संपसारि [ सम्प्रसारिन् ] सू० १६ १६ पहार [ स + + धारय् ] - संपहारिस्, सू० २|१|१५ संपा[संपातिम] ० १ । १६४. आ० चू० ११४० ५।४५ ६।५३ संपाउण [ सं + + आप् ] -- सपाउणंति, भ० ११ १०६ - संपाणिस्सामो, नाया० १।१८।५४. – संपाउणेज्जा, भ० १७/६७ संपाउणणा [ सम्प्रापणा ] भ० २० ४३ संपाउणेत्ता [ सम्प्राप्य ] भ० १७ ६७ संपागडपडिसेवि [सम्प्रकटप्रतिषेविन् ] ठा०४।१४८, २७६ संपातिम [संपातिम] आ० १२८५. आ० चू० ३।१५. सू० १।७।७ संपात [ संप्रातर् ] ठा० ३।८७ पायुपायक [सम्पातोत्पातक] पहा० ५।२ संपाव [सं+प्र + आपय् ] - संपावेइ, नाया० १।१५।६. उवा० ७७४६. -- संपावेहिहि नाया० १।१८।५१ संपावण [ संप्रापण ] नाया० १ १ ८ ६०, ६१ संपाविकाम [ सम्प्राप्तुकाम ] सम० १२. भ० १1७; २।३०, ६८; ७।२०३; ८ २६१, २६२; १४१०६. नाया० १।१।२०६; १ | १३ | ४२; २।१।११, १६. अंत० ६४१, ८४ संपावित्तए [ संप्रापयितुम् ] नाया० १।१८।५१ संपावि [ सम्प्रापित ] पहा० ३।१६ पिडिय [सम्पण्डित ] नाया० १|१|३३ [ संस्पृष्ट ] सू० १ ४ ३६ संपिडिय [ पिण्डित ] आ० चू० ३।६०, ६१; ५४६, ५०; ६।५७, ५८ Jain Education International संबंधि संपिणद्ध [ सम्पिनद्ध] भ० ७ ११६; ६ १७२; १६५२. नाया० १।१६।२५८. पहा० ६।१ संपिहित्ताणं | सम्पिधाय ] सम० ३०|१|३ संपुंच्छिया [ सम्प्रछिका ] नाया ११७ २६ पुच्छ [ संप्रश्न ] सू० १ हा २१ पुड [ संपुट ] सू० १।५।२३. अंत० ३।४१. पहा ० ३।१२ पुण [ सम्पूर्ण ] ० २।६० भ० ११।१४५. नाया० १।१।३३, ६८, १०३; १।२।१२, २१; ११६ | १० ; १।१३।१५; १।१८।३३. अं० ३।६५. विवा० १।२।२४. २६, ३०; १।३।२६ १७ १६, २३, २८ संपूजित [ सम्पूजित ] पहा० ५१, १० संजय [सम्पूजित ] सम० प्र० ९३ संपूयण [ सम्पूजन ] सू० १1१०1७ संपेस [ सम्प्रेष ] नाया० १८१७३, १७४ संपेस [ सम्प्रेषण ] नाया० १८१६१ संपेस [ सम्प्रेषित ] नाया० ११८ १७२ संह [ सं + + ईक्ष् ] – संपेहेइ, भ० २।३१. नाय. ० १११४८. उवा० १२०. अंत० ३।३१. अणु० ३।११. विवा० १।१।६०. संपेर्हेति, नाया० १।५।११८. विवा० १६।१५. - संपेहेमि, नाया० १।७।२५ उवा० १७६. -सपेहेसि भ० २।६७. नाया० १।१।१५५ [ संप्रेक्ष्य ] ० २।५. सू० १९६ वा० १२० संहिता [ संप्रेक्ष्य ] संपेहेत्ता [ सम्प्रेक्ष्य ] भ० २।३१. नाया० १|१|४८. अंत० ३।३१. अणु ० ३।११. विवा० १।१।६० फास [ संस्पर्श ] ० ५।७१; ६।२।१४ संकास [ सं + स्पृश् ] – संफासे, आ० चू० ११३३ संब [ शाम्ब ] नाया० ११५ । ६; १।१६ १३२, १८५. अंत० १११४; ४२, ६; ५।११,४०, ४१ ब] [ शम्ब] पहा० ४।५ संबंधि [ सम्बन्धिन् ] आ० चू० १५ १३, ३४. भ० ३।३३, १०२; ६।२१०; ११।६३, १५३; १६।७१; १८ ।४७ से ४६. नाया० १।१८ १ १ २ १२, १७, १९, २०, २३, ३४, ५८; १।४।२१; १।५।२०, २६; १७ ६, ६, १०, २२, २५, २६, २६, ३३, ३८, ४२; ११८/६६, ६७ ; १ ६ ४८ ; १।१३ । १५; १४१४११८,१६,५३; १।१५।११, ७०१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840