Book Title: Agam Shabdakosha
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बिउलतराग अंगसुत्ताणि शब्दसूची
विकच्छसुत्तग विउलतराग [विपुलतरक] भ० ८।१८७ विउस्स [वि+ उत्+श्रि] –विउस्संति, सू० ११११५० विउलतराय [विपुलतरक] भ० ८।१८७ विउस्सग [व्युत्सर्ग] ठा० ४।२५५ विउलमइ[विपुलमति ] भ० ८।१८७
विउस्सग्ग [व्युत्सर्ग] ठा० ४१७०, २५४; ६।१६, ६६. विउलमति[विपुलमति] ठा० २।६६
____भ० १।४२३ से ४२७ विउव्व [वि+कृ] -विउब्वइ, आ० चू० १५।२८. भ० विउस्सग्गपडिमा [व्युत्सर्गप्रतिमा ] ठा० ४।६६
११३५४. नाया०१।११५६.उवा० २।२१. -विउव्वंति, विउस्सित [व्युच्छित ] सू० १२११६ भ० १२।१८३.नाया० १।८।१९६. -विउब्बति, आ० विउस्सिय [व्युच्छित] सू० १।११५० चू० १५।२८. –विउव्वामि,नाया०११८७६.—विउ- विऊसिर [वि+उत्+सृज्-विऊसिरे, आ० चू० विसु, भ० १२।१८४. ----विउव्विस्संति,भ०१२।१८४.
१६११ -विउव्विस्सति, भ० १३।१५०. –विउव्विस्सामि, विओग[वियोग] भ० १८०३६।१ भ०१८।१०४
विओज [वि+योजय] -विओजयंति, सू० १।५।१६ विउव्वणा[विकरण] भ० ३।१।१
विओय [वितोय] पण्हा०३७ विउध्वमाण [विकुर्वाण] भ० १२।१२३, १८३ विओवात [व्यवपात] सू०२।४।१७, १६ विउविज्जमाण [विक्रियमाण] ठा० १०१६ विओवाय [व्यवपात] आ० ६।११३. सू० २।२।४ से ७ . विउन्वित [विकृत] ठा० २।१६७ से २०० विओसज्ज [व्युत्सृज्य] सू० १।१०।२४ विउविता [विकृत्य] आ० चू० १५।२८
विओसमण [व्यवशमन] पण्हा० ६।१५; ७।१५; ८७; विउवित्तए [विकर्तुम् ] भ० १२।१८३, १८४
१०।१२ विउवित्ता [विकृत्य] ठा० ७।२. भ० ११३५४. नाया० विओसरणया [व्युत्सर्जन] भ० २।९७; ९।१४५,१४६; १।११५६. उवा० २।२८
११।११६ विउब्विय [विकृत्य] ठा० ३।६. भ० २१७६ विओसवण[व्यवशमन] पण्हा० ६।५ विउव्विय [विकृत] सू० २।३।२ से १००. सम० प्र० विओसवितपाहुड [व्यवशमितप्राभृत] ठा० ४।४५३
२२४।६. नाया० १११६०; ११८।२१४।२ विओसविय [व्यवशमित] सम० २००१ विउव्विय [वैक्रिय] भ० १८।१५१
विओसवियपाहुड [व्यवशमितप्राभृत] ठा० ३।४७७ विउस [वि+उत्+सृज्]-विउसेज्जा, आ० चू०३।६. विओसित [व्यवसित] सू० १।१३।५ -वोसेज्ज, सू० ११८।२७
विझगिरि [विन्ध्यगिरि] भ० ३।१००; १४।१०३; विउस [व्युत्सृष्ट] ठा० ६।६२
१५॥१६७, १८६. नाया० १११११६३, १७४, १७६ विउसग्ग [व्युत्सर्ग] ठा० ८।२०।६।४२; १०।७३.सम० विद [वृन्द] भ०७।१७७, १८६, १९६; ६।२०५.नाया०
३२॥११४. भ० २५१५५६, ५८०,६११, ६१३,६१८ शा५७,६४,१।१६।१४६, १४६, १५३,१५६,१५७, विउसग्गपडिमा [व्युत्सर्गप्रतिमा] ठा० २।२४४
१५६, १७४, २३७, २४८, ३०३. अंत० ३।५८ विउसमण [व्यशमन] भ० १२।१२८ ।
विद [विन्द्] -विदति, सू० १।१४।२७ विउसमणया [व्यवशमन] भ० १७१४८
विध [व्यध्] -विधेज्जा, भ० ११३७० विउसरणया [व्युत्सर्जन] नाया० १।१।६६ ; १।५।१७ विधित्तु [व्यद्ध] सू० २।२।६ विउसवित [व्यवशमित [ ठा० ६।१००
विसति [विंशति] नाया० १।१।१५६ विउसिज्ज [व्युत्सृज्य]आ० ८।८।५,१३ विहणिज्ज [बृहणीय] नाया०१।१।२४ विउसिज्जा [व्युत्सृज्य] आ० ६।३१
विकंपित [विकम्पित] पण्हा० ३।५ विउसित [विकोशित] पण्हा० ३।५
विकच्छसुत्तंग [वैकक्षसूत्रक] भ० ६।१६०
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