Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ [१०९] विसालिसेहिं सीलेहिं , महासुक्का व दिप्पंता , [११०] अप्पिया देवकामाणं , उड्ढं कप्पेसु चि टुंति, जक्खा उत्तरउत्तरा । मन्जंता अपुणोच्च यं ।। कामरुव विउव्विणो । पुव्वा वाससया बहू ।। अज्झयणं-३ । । [१११] तत्थ ठिच्चा जहाठाणं , जक्खा आउक्खए चुया उति मा नुसं जोणिं , से दसंगेऽभिजायई ।। [११२] खेत्तं वत्थु हिरण्णं च , पसवो दासपोरुसं चत्तारि कामखं धाणि, तत्थ से उववज्जई ।। ११३] मित्तवं नायवं होइ , उच्चागोए य वण्णवं अप्पायंके महापन्ने , अभिजाए जसोबले ।। [११४] भोच्चा माणुस्सए भोए , अप्पडिरुवे अहाउयं पुव्विं विसुद्धसद्धम्मे , केवलं बोहि बुज्झिया ।। [११५] चउरंगं दुल्लहं नच्चा , संजमं पडिवज्जिया तवसा धुयकम्मसे , सिद्धे हवइ सासए || त्ति बेमि • तइयं अज्झयणं सम्मत्तं . ० चउत्थं अज्झयणं असंखयं . । । [११६] असंखयं जीवियं मा पमायए , जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते , किण्णु विहिंसा अजया गहिति ।। [११७] जे पावकम्मेहिं घनं म नूस्सा, समाययंती अमइं गहाय । पहाय ते पासपयट्टिए नरे , वेरानुबद्धा नरयं उर्वति ।। [११८] तेणे जहा संधिमुहे गहीए , सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । ए वं पया पेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्खो अत्थि ।। [११९] संसारमावन्न परस्स अट्ठा , साहारणं जं च करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले , न बंधवा बंधवयं उर्वति ।। [१२०] वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते , इममि लोए अदवा परत्था । दीवप्पणढे व अ नंतमोहे, नेयाउयं दद्मदह्रमेव ।। [१२१] सत्तेस् यावी पडिबुद्धजीवी , नो वीससे पं डिए आस्पन्ने । घोरा मुहत्ता अबलं सरीरं , भारंडपखीव चरेऽपमत्तो ।। [१२२] चरे पयाइं परिसंकमाणो , जं किंचि पासं इह म न्नमाणो । लाभत्तरे जीवियं बूहइता , पच्छा परिन्नायमलावधंसी ।। [१२३] छंदं निरोहेण उवेइ मोक्खं , आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाई वासाई चरेऽप्पमत्तो , तम्हा मुनी खिप्पमुवेइ मोक्खं ।। [१२४] स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा , एसोवमा सासयवाइयाणं । दीपरत्नसागर संशोधितः] [10] [४३-उत्तरज्झयण]

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