Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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जो न सज्जइ भोगेसु , तं वयं बूम माहणं ] [९९१] पसुबंधा सव्ववेया ज टुं च पावकम्मुणा |
न तं तायं ति दुस्सीलं , कम्माणि बलवं ति हि ।। [९९२] नवि मुं डिएण समणो , न ॐकारेण बं भणो ।
न मु नी रण्णवासेणं , कुसचीरेण न तावसो ।। [९९३] समयाए समणो होइ , बंभचेरेण बं भणो ।
नाणेण य मु नी होइ , तवेण होइ तावसो || [९९४] कम्मुणा बं भणो हि , कम्मुणा होइ खत्तिओ ।
वईसो कम्मुणा होइ , सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। [९९५] एए पाउकरे बुद्धे , जेहिं होइ सिणायओ ।
सव्वकम्मविनिम्मुक्कं, तं वयं बूम माहणं ।। [९९६] एवं गुणसमाउत्ता , जे भवं ति दिउत्तमा ।
ते समत्था समुद्धत्तुं , परं अ पाणमेव य ।।
अज्झयणं-२५
[९९७] एवं तु संसए छिन्ने , विजयघोसे य माहणे ।
समुदाया तयं तं तु , जयघोसं महामु निं ।। [९९८] तुढे य विजयघोसे , इणमुदाहु कयंजली ।
माहणत्तं जहाभूयं , सुद् मे उवदंसियं ।। [९९९] तुब्भे जइया जन्नाणं , तुब्भे वेयविऊ विऊ ।
जोइसंगविऊ तुब्भे , तुब्भे धम्माण पारगा ।। [१०००] तुब्भे समत्था समुद्धत्तुं , परं अ प्पाणमेव य ।
तयनुग्गहं करेहऽम्हं , भिक्खेणं भिक्खु उत्तमा ।। [१००१] न कज्जं मज्झ भिक्खेणं , खिप्पं निक्खमसू दिया ! ।
मा भमिहिसि भयाव त्ते, घोरे संसारसागरे ।। [१००२] उवलेवो होइ भोगेसु , अभोगी नोवलिप्प इ ।
भोगी भमई संसारे , अभोगी विप्पमुच्चई ।। [१००३] उल्लो सु क्को य दो छूढा , गोलया मट्टियामया ।
दोऽवि आवडिया कु इडे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई ।। [१००४] एवं लग्गं ति दुम्मेहा , जे नरा कामलालसा |
विरत्ता उ न लग्गं ति, जहा से सुक्के गोलए || [१००५] एवं से विजयघोसे , जयघोसस्स अं तिए ।
अनगारस्स निक्खं तो, धम्म सोच्चा अ नुत्तरं ।। [१००६] खवित्ता पुव्वकम्माइं , संजमेण तवेण य ।
जयघोसविजयघोसा, सिद्धिं पत्ता अ नुत्तरं ।। त्ति बेमि
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयण]
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