Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ।। [१०८८] एगत्तं च पुहत्तं च , संखा संठाणमेव य ।
संजोगा य विभागा य , पज्जवाणं तु लक्खणं ।। [१०८९] जीवाऽजीवा य बं धो य , पुण्णं पावाऽऽसवो तहा |
संवरो निज्जरा मोक्खो , संतेण तहिया नव ।। [१०९०] तहियाणं तु भावाणं , सब्भावे उवएसणं ।
भावेणं सद्दहं तस्स, सम्मत्तं, तं वियाहियं ।। [१०९१] निसग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्त-बीयरुइमेव ।
अभिगम-वित्थाररुई, किरिया-संखेव धम्मरुई ।। [१०९२] भूयत्थेणाहिगया, जीवाऽजीवा य पुण्ण पावं च ।
सह सं मुझ्यासव संवरो, रोएइ उ निस्सग्गो ।। [१०९३] जो जि नदिढे भावे , चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव ।
एमेव नन्नह त्ति य , स निसग्गरुई त्ति नायव्वो || [१०९४] एए चेव उ भावे , उवइढे जो परेण सद्दहई ।
अज्झयणं-२८
छउमत्थेण जिणेण व , उवएसरुइ त्ति नायव्वो ।। [१०९५] रागो दोसो मोहो , अन्नाणं जस्स अवगयं होइ ।
आणाए रोयंतो , सो खल आणारुई नामं ।।। [१०९६] जो सुत्तमहिज्जं तो, सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं ।
अंगेण बहिरेण व , सो सुत्तरुई त्ति नायव्वो ।। [१०९७] एगेण अ नेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं ।
उदए व्व तेल्लबिं दू, सो बीयरुई त्ति नायव्वो ।। [१०९८] सो होइ अभिगमरुई , सुयनाणं ज स्स अत्थओ दिहुँ ।
एक्कारस अंगाई , पइण्णगं दि द्विवाओ य ।। [१०९९] दव्वाण सव्वभावा , सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा ।
सव्वाहिं नयविहीहिं , वित्थाररुइ त्ति नायव्वो ।। [११००] दंसणनाणचरित्ते, तवविनए सच्चसमिइगुत्तीसु ।
जो किरियाभावरुई , सो खल किरियारुई नाम ।। [११०१] अनभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो ।
अविसारओ पवयणे , अणभिग्गहिओ य सेसेस् ।। [११०२] जो अत्थिकायधम्म , सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च ।
सद्दहइ जिणाभिहियं , सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ।। [११०३] परमत्थसंथवो वा , सुदिट्टपरमत्थसेवणं वा वि |
वावन्नकुदंसणवज्जणा, य सम्मत्तसद्दहणा ।। [११०४] नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहणं , दंसणे उ भइयव्वं ।
सर
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयणं]
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