Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 85
________________ [१२८२] सदस्स सोयं गहणं वयंति , सोयस्स सदं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहू , दोसस्स हेउं अमणुन्नमा ।। [१२८३] सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं , अकालियं पावइ से वि नासं | रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे , सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्च॑ ।। [१२८४] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं , तंसि क्खणे से 3 उवेइ दुक्खं । दुदंतदोसेण सएण जं तू, न किं चि सदं अवरज्झई से ।। [१२८५] एगंतरत्ते रुइरंसि सद्दे , अतालिसे से कुणई पओसं | दुक्खस्स सं पीलमुवेइ बाले , न लिप्पई ते न मुनी विरागो ।। [१२८६] सद्दानुगासानुगए य जीवे , चराचरे हिंसइड नेगरुवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले , पीलेइ अतद्वगुरु किलिडे ।। [१२८७] सद्दानुवाएण परिग्गहेण , उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से , संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। [१२८८] सद्दे अतित्ते य परिग्गहं मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिँ | स्स , लोभाविले आययई अदत्तं ।। [१२८९] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो , सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । अज्झयणं-३२ मायामसं व ड्ढइ लोभदोसा , तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई ।।। [१२९०] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य , पओगकाले य दुही दुरं ते । एवं अदत्ताणि समाययं तो, सद्दे अतित्तो दुहीओ अ निस्सो || [१२९१] सद्दानुरत्तस्स नरस्स एवं , कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं , निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। [१२९२] एमेव सदं मि गओ पओसं , उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं , जं से पुणो इ दुहं विवागे ।। [१२९३] सद्दे विरत्तो म नुओ विसोगो , एएण दुक्खोहपरंपरेण | न लिप्पए भवमझे वि सं तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। [१२९४] घाणस्स गंधं गहणं वयंति , तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाह , समो य जो तेसु स वीयरागो ।। [१२९५] गंधस्स घाणं गहणं वयंति , घाणस्स गंधं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु , दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। [१२९६] गंधेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं , अकालियं पावइ से वि नासे | रागाउरे ओसहगं धगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमं ते ।। [१२९७] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं , तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जं तू, न किंचि गंधं अवरज्झई से ।। [१२९८] एगंतरते रुइरंसि गं धे, अतालिसे से कुणई पओसं | दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले , न लिप्पई तेण म् नी विरागो || [दीपरत्नसागर संशोधितः] [84] [४३-उत्तरज्झयण]

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