Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 88
________________ [१३३३] मनस्स भावं गहणं वयंति , तं रागहेउं तुं मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाह , समो य जो तेसु स वीयरागो ।। [१३३४] भावस्स म नं गहणं वयंति , मनस्स भावं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाह , दोसस्स हेउं अमणुन्नमाह् ।। [१३३५] भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं , अकालियं पावइ से वि नासं | रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे , करेणुमग्गावहिए गजे वा ।। [१३३६] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं , तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं | दुदंतदोसेण सएण जंतू , न किंचि भावं अवरज्झई से ।। [१३३७] एगतरत्ते रुइरंसि भावे , अतालिसे से कुणई पओसं | दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले , न लिप्पई तेण म् नी विरागो ।। [१३३८] भावानुगासानुगए य जीवे , चराचरे हिंसइड नेगरुवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले , पीलेइ अत्त द्वगुरु किलि द्वे ।। [१३३९] भावानुवाएण परिग्गहेण , उप्पायणे रक्खणसन्निओगे | वए विओगे य कहं सुहं से , संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।। [१३४०] भावे अतित्ते य परिग्गहं मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि । अज्झयणं-३२ अतुढिदोसेण दुही परस्स , लोभाविले आययई अदत्तं ।। [१३४१] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो , भावे अतित्तस्स परिग्गहे य | मायामसं व पुढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। [१३४२] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य , पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययं तो, भावे अतित्तो दुहिओ अ निस्सो || [१३४३] भावानुरत्तस्स नरस्स एवं , कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं , निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। [१३४४] एमेव भावं मि गओ पओसं , उवेइ दुक्खोहपरंपराओ | पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं , जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। [१३४५] भावे विरत्तो म नुओ विसोगो , एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो , जलेण वा पोक्खरिणीपिलासं ।। [१३४६] एविंदियत्था य म नस्स अत्था, दुक्खस्स हे मनुयस्स रागिणो । ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं न वीयरागस्स करें ति किंचि ।। [१३४७] न कामभोगा समयं उवें ति, न यावि भोगा विगई उवें ति | जे तप्पओसी य परिग्गही य , सो तेस् मोहा विगइं उवेइ ।। [१३४८] कोहं च मा नं च तहेव मायं , लोहं दुगुच्छं अरइं रइं च | हासं भयं सोगपमित्थिवेयं , नपुंसवेयं विविहे य भावे ।। [१३४९] आवज्जई एवम नेगरुवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्ने य एयप्पभवे विसेसे , कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [87] [४३-उत्तरज्झयणं]

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