Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 87
________________ अज्झयणं-३२ [१३१६] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य एवं अदत्ताणि समाययं तो, [१३१७] रसानुरत्तस्स नरस्स एवं तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं [१३१८] एमेव रसं मि गओ पओसं पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं तो, [१३१९] रसे विरत्तो म ओ विग न लिप्पई भवमज्झे वि सं [१३२०] कायस्स फासं गहणं वयंति तं दो अन्नमाहु, [१३२१] फासस्स कायं गहणं वयंति रागस्स हे समणुन्नमाहु [१३२२] फासेसु जो गिद्धइमुइ तिव्वं रागाउरे सीयजलावसन्ने " 3 [१३२३] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं [ दीपरत्नसागर संशोधितः ] 9 " 3 पओगकाले यदुही दुरं ते । रसे अतित्तो दुहिओ अ निस्सो ।। कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । " एवं अदत्ताणि समाययं तो, [१३३०] फासानुरत्तस्स नरस्स एवं तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं " [१३३१] एमेव फासं मि गओ पओसं पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं " " निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । जं से पुणो होइ दुहं विवागे || " " " दुद्दतदोसेण सएण जं तू, न किंचि फासं अवरज्झई से ।। अतालिसे से कुणई पओसं । [१३२४] एगंतरत्ते रुइरंसि फासे दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुनी विरागो || चराचरे हिंसइ नेगरुवे | पीलेइ अत्त ट्ठगुरु किलि ट्ठे ।। उपाय रक्खणसन्निओगे । संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ मि, सत्तोवसत्तो न वेइ तुट्ठि । लोभाविले आययई अदत्तं ॥ [१३२५] फासानुगासानुगए य जीवे चित्तेहि ते परितावेइ बाले [१३२६] फासानुवाएण परिग्गहेण व विओगे य कहं सुहं से [१३२७] फासे अतित्ते य परिग्गहं दोसे दुही परस्स [१३२८] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं व ड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। य पओगकाले यदुही दुरंते । फासे अतित्तो दुहिओ अ निस्स ।। कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ? | निव्वत्तई जस्स कण दुक्खं ।। उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । [१३२९] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ " जं से पुणो होइ दुहे विवागे ।। 3 [१३३२] फासे विरत्तो म ओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। न लिप्पई भवमज्झे वि सं तो, [86] " " तं रागहे ं तु मणुन्नमा । " समो य जो तेसु य वीयरागो ।। कायस्स फासं गहणं वयंति । " एएण दुक्खोहपरंपरेण । जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ 9 दोसस्स हे अमणुन्नमाहु || अकालिय पाव से वि नासं । गाहग्गहीए महिसे विवन्ने || तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । " 3 [४३-उत्तरज्झयणं]

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