Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text ________________
अज्झयणं-३२
[१२६५ ] कामाणुगिद्धिप्पभवं खुदुक्खं जे काइयं मा नसियं च किंचि [१२६६] जहा य किं पागफला मनोरमा, ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा [१२६७ ] जे इं दियाणं विसया मणुन्ना,
सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स ।
तस्संतगं गच्छइ वीयरागो || रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा । एओवमा कामगुणा विवागे || न तेसु भावं निसिरे कया ई ।
न या मणुन्नेसु मणं पि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी ।। ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहुं । समो य जो तेसु य वीयरागो ।। ति,
[१२६८] चक्खुस्स रूवं गहणं वयं अन्नहुं,
[१२६९] रूवस्स चक्खुं गहणं वयं रागस्स हेउं समणुन्नमाहुं
[१२७०] रूवेसु जो गिद्ध मुवेइ तिव्वं रागाउरे से जह वा पयंगे
[१२७१] जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं दुद्दतदोसेण सएण जं
[१२७२] एगंतरत्ते रुइसि रुवे
"
दुक्खस्स सं पीलमुवेइ बाले,
[१२७३] रुवानुगासानुगए य जीवे चित्तेहि ते परितावेइ बाले
पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्
[१२८०] रूवे विरत्तो म ओव
न लिप्प भवमज्झे ऽवि
9
[ दीपरत्नसागर संशोधितः]
"
"
नई ते न मुनी विरागो ।।
चराचरे हिंसइ
गरुवे |
पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्टे ।। उप्पायने रक्खणसन्निओगे । संभोगकाले य अतित्तिलाभे ।।
"
मि,
अ
[१२७४] रुवानुवाएण परिग्गहेण विओगे य कहं सुहं से [१२७५] रुवे अतित्ते य परिग्गहं सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । दोसे दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ [१२७६] तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रुवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मा यामुसं व ड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से II [१२७७] मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पयोगकाले यदुही दुरं ते । एवं अदत्ताणि समाययं तो, रूवे अतित्तो दुहिओ अ निस्सो || [१२७८] रूवानुरत्तस्स नरस्स एवं कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किं चि ? । तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कण दुक्खं ।।
2
[१२७९] एमेव रूवं मि गओपओसं
उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ।
जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।।
"
एएण दुक्खोहपरंपरेण ।
जलेण वा पोक्खरिणी पलासं ।
"
"
आलोयलोले समुवेइ मच्चुं ॥
तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं ।
"
न किं चि रूवं अवरज्झई से ।।
अतालिसे से कुणई पओसं ।
"
"
"
चक्सुस्स रूवं गहणं वयंति ।
दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहुं ॥
अकालियं पावइ सेवि नासं ।
संतो,
"
"
[१२८१] सोयस्स सद्दं गहणं वयंति तं रागहेतु मणुन्नमाहु |
"
तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीरागो ।।
[83]
[४३-उत्तरज्झयणं]
Loading... Page Navigation 1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112