Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अदु बुक्कसं पुलागं वा , जवणट्ठाए निसेवए मंथु ।। [२२१] जे लक्खणं च सुविणं च , अंगविज्जं च जे पउंजंति ।
न हु ते समणा वुच्चंति , एवं आयरिएहिं अक्खायं ।। [२२२] इह जीवियं अ नियमेत्ता, पब्भट्ठा समाहिजोएहिं ।
ते कामभोगरसगिद्धा , उववज्जति
काए ||
अज्झयणं-८
[२२३] तत्तो वि य उव्वट्टित्ता , संसारं बहु अ नुपरियटति ।
बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोही होइ सुदुल्लहा तेसिं ।। [२२४] कसिणंपि जो इमं लोयं , पडिपुण्णं दलेज्ज इ क्कस्स ।
तेणावि से न संतुस्से , इइ दुप्पूरए इमे आया ।। [२२५] जहा लाहो तहा लोहो , लाहा लोहो पव इढई ।
दोमासकयं कज्जं , कोडीए वि न नि ट्ठियं ।। [२२६] नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा , गंडवच्छासु अनेगचित्तासु ।
जाओ पुरिसं पलोभित्ता , खेल्लंति जहा व दासेहिं ।। [२२७] नारीसु नोवगिज्झेज्जा , इत्थी विप्पजहे अ नगारे ।
धम्मं च पेसलं नच्चा , तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ।।। [२२८] इअ एस धम्मे अक्खाए , कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिंति जे उ काहिं ति, तेहिं आराहिया दुवे लोग || त्ति बेमि
__ • अट्ठमं अज्झयणं सम्मत्तं . ० नवमं अज्झयणं - नमिपव्वज्जा ०
[२२९] चइऊण देवलोगाओ , उववन्नो माणुसं मि लोगं मि ।
उवसंत मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जा इं ।। [२३०] जाइं सरित्तु भयवं , सयंसंबुद्धो अ नुत्तरे धम्मे ।
पुत्तं ठवेत्तु रज्जे , अभिनिक्खमई नमी राया || [२३१] से देवलोगसरिसे , अंतेउरवरगओ वरे भोए ।
भुंजित्तु नमी राया , बुद्धो भोगे परिच्चयई ।। [२३२] मिहिलं सपुरज नवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं ।
चिच्चा अभिनिक्खं तो, एगंतमहिडढिओ भयवं ।। [२३३] कोलाहलगभूयं, आसी मिहिलाए पव्वयं तंमि ।
तइया रायरिसिं मि, नमिमि अभि निक्खमंतंमि ।। [२३४] अब्भुद्वियं रायरिसिं , पव्वज्जाठाणमुत्तमं ।
सक्को माहणरूवेण , इमं वयणमब्बवी ।। [२३५] किं नु भो ! अज्ज मिहिलाए , कोलाहलगसंकुला ।
सुव्वंति दारुणा सद्दा , पासाएसु गिहेसु य ? || दीपरत्नसागर संशोधितः]
। [17]
[४३-उत्तरज्झयण]
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