Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 31
________________ अज्झयणं-१३ | दायारमन्नं अणुसंकमं ति ॥ [४३२] उवणिज्जई जीवियमप्पमायं, वण्णं जरा हरइ नरस्स राय ! I पंचालराया! वयणं सुणाहि मा कासि कमाई महालयाई || [४३१] [४३४] [४३३] अहं पि जाणामि जहेह साहू भोगा इमे संग करा हवंति, हत्थिणपुरंमि चित्ता [ ४३५ ] [४३६] [४३७] [४३८] [४३९] [४४०] [४४२] कामभोगेसु गिद्धेणं तस्स में अपडिकं जाणमाणो वि जं धम्मं कामभोगे मच्छिओ ।। नागो जहा पंकजलावसन्नो थलं नाभिसमे तीरं I | " एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा न भिक्खुणो मग्गम नुव्वयामो || अच्चेइ कालो तूरं ति राइ, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा उविच्च भोगा पुरिसं चयं ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ।। जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकं पी, न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो पंचालरायाऽवि य बं भदत्तो, अज्जाई कम्माई करेहि रायं । तो होहिसि देवो इओ विउव्वी ।। गिद्धोसि आरं भपरिग्गहेसु । गच्छामि रायं! आमंतिओ सि । साहुस्स तस्स वयणं अकाउं I अनुत्तरे भुंजिय कामभोगे अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ।। [४४१] चित्तोऽवि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गचारित्ततवो महेसी । अनुत्तरं संजमं पालइत्ता, अनुत्तरं सिद्धिगइं गओ || ि [४४३] तं एक्कगं तुच्छसरीरगं से भज्जा य पुत्तोवि य नायओव [४४४] [ ४४५ ] 3 ० [ दीपरत्नसागर संशोधितः ] 3 3 तस्स, " " " " " ! जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं I जे दुज्जया अज्जो ! अम्हारिसेहिं ।। नरवई महि ड्ढीयं I " द चिईगयं दहियं उ पावगेणं 3 3 " 3 बेमि • तेरसमं अज्झयणं सम्मत्तं • चउद्दसमं अज्झयणं-उसुयारिज्जं देवा भवित्ताण पुरे भवं मि केई चुया एगविमा नवासी पुरे पुराणे उसुयारनामे खाए समिद्धे सुरलोगरम् ।। सकम्मसेसेण पुराकएणं कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया निव्विण्णसंसारभया जहाय, जिनिंदमग्गं सरणं पवन्ना || पुमत्तमागम्म कुमार दोsवि, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती विसालकित्ती य तहोसुयारो रायऽत्थ देवी कमलावई य ।। जाईजरामच्चुभयाभिभूया, बहिंविहाराभिनिविट्ठचित्ता संसारचक्कस्स विमोक्खण ट्ठा, दट्ठूण ते कामगुणे विरत्ता ।। [30] नियाणमसुहं कडं || इमं एयारिसं फलं ० I I I I I [४३-उत्तरज्झयणं]

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