Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अज्झयणं-२०
[७६१]
[७६२]
[ ७६३]
[७६४]
[७६५]
[७६७]
[७७०]
निरत्थया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तमट्ठे विवज्जा
समेइ ।
इमे वि से नत्थि परं वि लोए, दुहओ वि से झिज्जइ तत्थ लोए ।। एमेवऽहा छं दकुसीलरूवे, मग्गं विराहित्तु जिणुत्तमाणं कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा
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निरट्ठसोया परियावमेइ ||
सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं
मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं चरित्तमायारगुणन्निए ओ निरासवे संखविया ण कम्मं एवग्गदंतेऽवि महातवोध ने, महानियंठिज्जमिणं महासुयं
[७६६] तुट्ठो य सेणिओ राया
अना
हत्तं जहाभूयं,
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[ ७७३] चंपाए पालिए नाम
महावीरस्स भगवओ
[ दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[ ७७४] निग्गंथे पावयणे
पोएण ववहरं ते, [७७५] पिहुंडे ववहरं तस्स, तं ससत्तं इगिज्झ [ ७७६] अह पालियस्स घरणी
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[ ७६८ ] तं सि नाहो अ नाहाणं,
"
इणमुदाहु कयंजली
सुट्टु मे वदंसियं ।।
तुझं सुद्धं खु मनुस्स जम्मं, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ! ।
"
[ ७६९] पुच्छिऊण मए तुब्भं, निमंतिया य भोगेहिं
एवं थुणित्ताण से रायसीहो सओरोहो य सपरियणो सबंधवो, [७७१] ऊससियरोमकूवो,
अभिवंदिऊण सिरसा
अइयाओ नराहिवो ||
[७७२] इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को, विहरड़ वसुहं विगयमोहो । त
विंसइमं अज्झयणं सम्मत्तं •
एगविंसइमं अज्झयणं समुपायं
"
हा सबंधवा य, जं भे ठिया मग्गे जि नुत्तमाणं ।। सव्वभूयाण संजया I खामेमि ते महाभाग ! इच्छामि अ नुसासितं ।। झाणविग्घाओ य जो कओ । तं सव्वं मरिसेहि मे ॥
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अनुत्तरं संजम पालियाणं उवेइ ठामं विउलुत्तमं धुवं ॥ महामुनी महापइन्ने महासे
से काहए महया वित्थरेणं ।।
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अनुसासनं नाणगुणोववेयं ।
महानियंठाण व पहेणं ।।
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अनगारसीहं परमाइ भत्तीए धम्मानुरत्तो विमलेण चेयसा ।। काऊण य पयाहिणं
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साव आसि वाणिए ।
सीसे सो उ महप्पणो ||
साव से वि कोविए ।
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पिहुंडं नगरमागए ।। वाणिओ
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इ धूरं । सदेसमह पत्थिओ ||
समुद्दमि पवई ।
[४३-उत्तरज्झयणं]
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