Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[८०९] एयारिसाए इ ड्ढीए, जुत्तीए उत्तमाइ य ।
नियगाओ भव नाओ, निज्जाओ वण्हिपुंगवो ।। [८१०] अह सो तत्थ निज्जं तो, दिस्स पा ने भयढुए ।
वाडेहिं पंजरेहिं च , सन्निरुद्ध सुदुक्खिए ।। [८११] जीवियंतं तु सं पत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए |
पासित्ता से महापन्ने , सारहिं इणमब्बवी ।। [८१२] कस्स अट्ठा इमे पाणा , एए सव्वे सुहेसिणो ।
वाडेहिं पंजरेहिं च , सन्निरुद्धा य अच्छहिं ? || [८१३] अह सारही तओ भणई , एए भद्दा उ पाणिणो ।
तुज्झं विवाहकज्जं मि, भोयावेउं बहू ज नं ।। [८१४] सोऊण तस्स वयणं , बहुपाणिविनासणं ।
चिंतेइ से महापन्नो , सानुक्कोसे जिएहिं ऊ ।। [८१५] जइ मज्झ कारणा एए , हम्मति सुबहू जिया ।
अज्झयणं-२२
न मे एयं तु निस्सेसं , परलोगे भविस्सई ।। [८१६] सो कुं डलाण जुयलं , सुत्तगं च महायसो ।
आभरणाणि य सव्वाणि , सारहिस्स पणामए ।। [८१७] मनपरिणामो य कओ , देवा य जहोइयं समोइण्णा ।
सव्वड्ढीइ सपरिसा , निक्खमणं तस्स काउं जे || [८१८] देवमनुस्सपरिवुडो, सिबियारयणं तओ समारुढो ।
निक्खमिय बारगाओ , रेवययंमि हिओ भगवं ।। [८१९] उज्जाणं संपत्तो , ओइण्णो उत्तमाउ सीयाओ ।
साहस्सीइ परिवुडो , अह निक्खमई उ चित्ताहिं ।। [८२०] अह से सुगं धगंधीए, तुरियं मउकुंचिए ।
सयमेव लुचई केसे , पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ।। [८२१] वासुदेवो य णं भण ई, लुत्तकेसं जिइं दियं ।
इच्छियमनोरहं तुरियं , पावसु तं दमीसरा ।। [८२२] नाणेणं दंसणेणं च , चरित्तेणं तहेव य ।
खंतीए मुत्तीए , वड्ढमाणो भवाहि य ।। [८२३] एवं ते रामकेसवा , दसारा य बहू ज ना |
अरिट्ठनेमि वं दित्ता, अभिगया बारगापुरिं ।।। [८२४] सोऊण रायकन्ना , पव्वज्जं सा जि नस्स उ ।
नीहासा य निरा नंदा, सोगेण उ सम् च्छिया ।। [८२५] राईमई विचिं तेइ, धिरत्थु मम जीवियं ।
जा हं तेण परिच्चत्ता , सेयं पव्वइउं मम ||
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयणं]
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