Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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सन्निहीसंचओ चेव , वज्जेयव्वो सुदुक्करं ।। [६४५] छुहा तण्हा य सीउण्हं , दंसमसगा य वेयणा ।
अक्कोसा दुक्खसेज्जा य , तणफासा जल्लमेव य ।। [६४६] तालणा तज्जणा चेव
वहबंधपरीसहा | दक्खं भिक्खायरिया , जायणा य अलाभया ।। [६४७] कावोया जा इमा वित्ती , केसलोओ य दारुणो ।
दुक्खं बंभव्वयं घोरं , धारेउं य महप्पणो ।। [६४८] सुहोइओ तुम पुत्ता ! सुकुमालो सुमज्जिओ ।
न हुसी पभू तुमं पुत्ता ! सामण्णमनुपालिया ।।। [६४९] जावज्जीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो
गुरुओ लोहभारु व्व , जो पुत्ता होइ दुव्वहो || [६५०] आगासे गंगसोउ व्व , पडिसोउ व्व दुत्तरो ।
अज्झयणं-१९
बाहाहिं सागरो चेव , तरियव्वो य गुणोदही ।। [६५१] वालुयाकवलो चेव , निरस्साए उ संजमे
असिधारागमनं चेव , दुक्करं चरिउं तवो || [६५२] अहीं वेगं तदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त ! दुक्करे ।
जवा लोहमया चेव , चावेयव्वा सुदुक्करं ।। [६५३] जहा अग्गिसिहा दित्ता , पाउं होइ सुदुक्करा ।
तहा दुक्करं करेउं जे , तारूण्णे समणत्तणं ।। जहा दुक्खं भरेउं जे , होइ वायस्स कोत्थलो ।
तहा दुक्खं करेउं जे , कीवेणं समणत्तणं ।। [६५५] जहा तुलाए तोलेउं , दुक्करो मं दरो गिरी ।
तहा नियं नीसंकं , दुक्करं समणत्तणं ।। [६५६] जहा भुयाहिं तरिउं , दुक्करं रयणायरो ।
तहा अ नुवसंतेणं, दुक्करं दमसागरो || [६५७] भुंज माणुस्सए भोगे , पंचलक्खणए तुमं ।
भत्तभोगी तओ जाया ! पच्छा धम्म चरिस्ससि ।। [६५८] सो बिंतऽम्मापियरो , एवमेयं जहा फुडं
इह लोए निप्पिवासस्स , नत्थि किंचि वि दुक्करं ।।। [६५९] सारीरमानसा चेव , वेयणाओ अनं तओ ।
मए सोढाओ भीमाओ , असइं दुक्खभयाणि य ।। [६६०] जरामरणकांतारे,
चाउरते भयागरे मए सोढाणि भीमाणि , जम्माणि मरणाणि य || [६६१] जहा इहं अग नी उण्हो , एत्तोऽनंतगणो तहिं ।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[४३-उत्तरज्झयणं]
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