Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अज्झयणं-१५
मोनं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं जहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू || [४९६] ओवरयं चरेज्ज लाढे विरए वेयवियाssयरक्खिए
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पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हिवि न मुच्छि स भिक्खू ।। [४९७] अक्कोसवहं विइत्तु धीरे मुनी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते अव्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू || पंत सयणासणं भइत्ता सीउन्हं विविहं च दंसमसगं अव्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियास स भिक्खू ।।
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नो सक्कियमिच्छई न पूयं, नो वि य वं दणगं कुओ पसंसं ? ।
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से संजए सुव्व तवस्सी सहिए आयगवेस सभ II जेण पुणो जहाइ जीवियं मोहं वा कसिणं नियच्छई नरनारिं हे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू || छिन्नं सरं भोमं अंत लिक्खं, सुमिणं लक्खणं दंडं वत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू || [५०२] मंतं मूलं विविहं वेज्जचिं तं
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वमनविरेयणधुमनेत्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू || खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहणभोई य विविहा य सिप्पिणो नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ।। [५०४] गिहिणो जे पव्वइएण दि ट्ठा, अप्पवइएण व संथुया हविज्जा | तेसिं इहलोइयफल ट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू || [५०५] सयणासणपानभोयणं, विविहं खाइमं साइमं परेसिं लद्धुं । अदए पडिसेहिए नियं ठे, जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ।। [५०६ ] जं किंचि आहारपा नगं विविहं खाइमसाइमं परेसिं लध्धुं जो तं तिविहेण नाणुकं पे, मनवयकायसुसंवुडे स भिक्खू ।। आयामगं चेव जवोदणं च सीयं सोवीर जवोदगं च पिंडं नीरसं तु, पंतकुलाई परिव्वए जे स भिक्खू ।। सद्दा विविहा भवं ति लोए दिव्वा माणुस्सा तिरिच्छा भीमा भयभेरवा उराला, जो सोच्चा न विहिज्जई स भिक्खू ।। [५०९] वादं विविहं समिच्च लोए सहि खेयाग य कोवियप्पा पन्ने अभिभूय सव्वदंसी वसंते अविहेड स भिक्खू II असिप्पजीवी अगिहे अमित् जिइदिए सव्वओ विप्पमुक्के अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी चिच्चा गिहं एगचरे स भिक्खु ।।
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[दीपरत्नसागर संशोधितः ]
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त्ति बेमि
[४३-उत्तरज्झयणं]
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