Book Title: Agam 43 Uttarjjhayanam Chauttham Mulsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अज्झयणं-७
[१८८] तओ आउपरिक्खीणे आसुरीयं दिसं बाला
[१९८९] जहा कागिणिए हेउं
अपत्थं अं बगं भोच्चा
[१९०] एवं मा नुस्सगा कामा
एगो ऽत्थ लहई लाभं
[१९३] एगो मूलं पि
ववहारे उव मा एसा [१९४] मानुसत्तं भवे मूलं मूलच्छेण जीवाण
[१९५] दुहओ गई बालस्स
देवत्तं मा नुसत्तं च [१९६] तओ जिए सई होइ
[१९१] अनेग वासा नउया,
जाणि जयंति दुम्मेहा
[१९२] जहा य तिन्नि वणिया
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[ दीपरत्नसागर संशोधितः]
सहस्सगुणिया भुज्जो आउं कामा य दिव्विया ||
जा सा पन्नवओ ठिई
ऊणे
मूलं घेत्तूण निग्गया
एगो मूलेण आगओ ।।
आओ तत्थ वाणिओ एवं धम्मे वियाणह || लाभो देवई भवे नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥
आवई वहमूलिया जं जिए लोलुयासढे । विहिंदो
दुल्लहा तस्स उम्मग्गा [१९७] एवं जियं सपेहाए
मूल [१९८] वेमायाहिं सिक्खाहिं
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हारित्ता,
संति,
उवेंति मा नुसं जोगिं [१९९] जेसिं तु विउला सिक्खा
सीलवंता सविसेसा
[२००] एवमद्दीणवं भिक्खू कण्णु जिच्चमेलिक्खं
[२०१] जहा कुसग्गे उदगं
एवं मा नुसग्गा कामा [२०२] कुसग्गमेत्ता इमे कामा कस्स हेउं पुराकाउं [२०३] इह कामा नियट्टस्स, सोच्चा नेयाउयं मग्गं [२०४] इह कामा नि पूइदेहनिरोहेणं,
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चुया देहा विहिंसगा गच्छंति अवसा तमं ॥ सहस्सं हार नरो
राया रज्जं तु हारए || देवकामाण अं
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तिए
वाससयाउए ।
गए
अद्धाए सुचिरादवि ।।
डियं
तुलिया बालं च पं मानुसं जोणिमिं ति जे ।।
जे नरा गिहिसुव्वया
कम्मसच्चा
अत्तट्ठे अवरज्झई
जं भुज्जो परिभसई II अत्तट्ठे नावरज्झई
यट्ठस्स, भवे देवि त्ति मे सुयं ||
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पाणिणो ||
हु मूलियं ते अइच्छिया
अद्दीणा जं ति देवयं ||
अगारं च वियाणिया जिच्चमाणे न संविदे || समुद्देण समं मिणे देवकामाण अंतिए || सन्निरुद्धमि आउए
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जोगक्खेमं न संविदे ? ||
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[४३-उत्तरज्झयणं]
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