Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अट्ठकथा के अभिमतानुसार ये नरकों के नाम नहीं हैं अपितु नरक में रहने की अवधि के नाम हैं। मज्झिमनिकाय आदि में नरकों के पाँच नाम मिलते हैं। जातक अट्ठकथा, सुत्तनिपातअट्ठकथा आदि में नरक के लोहकुम्भीनिरय आदि नाम मिलते हैं। वैदिक परम्परा में नरक निरूपण
वैदिक परम्परा के आधारभूत ग्रन्थ ऋग्वेद आदि में नरक आदि का उल्लेख नहीं हुआ है। किन्तु उपनिषद् साहित्य में नरक का वर्णन है। वहां उल्लेख है - नरक में अन्धकार का साम्राज्य है, वहां आनन्द नामक कोई वस्त नहीं है। जो अविद्या के उपासक हैं. आत्मघाती हैं. बढी गाय आदि का दान देते हैं. वे नरक में जा कर पैदा होते हैं। अपने पिता को वृद्ध गायों का दान देते हुए देख कर बालक नचिकेता के मन में इसलिये संक्लेश पैदा हुआ था कि कहीं पिता को नरक न मिले। इसलिये उसने अपने आप को दान में देने की बात कही थी। पर उपनिषदों में नरक कहां है? इस संबंध में कोई वर्णन नहीं है और न यह वर्णन है कि उस अन्धकार लोक से जीव निकल कर पुनः अन्य लोक में जाते हैं या नहीं।
योगदर्शन व्यासभाष्य" में १. महाकाल २. अम्बरीष ३. रौरव ४. महारौरव ५. कालसूत्र ६. अन्धतामिस्र ७. अवीचि, इन सात नरकों के नाम निर्दिष्ट हैं। वहां पर जीवों को अपने कृत कर्मों से कटु फल प्राप्त होते हैं। नारकीय जीवों की आयु भी अत्यधिक लम्बी होती है। दीर्घ-आयु भोग कर वहां से जीव पुनः निकलते हैं। यह नरक पाताल लोक के नीचे अवस्थित हैं ।४५ योगदर्शन व्यासभाष्य की टीका में इन नरकों के अतिरिक्त कुम्भीपाक आदि उप-नरकों का भी वर्णन है। वाचस्पति ने उनकी संख्या अनेक लिखी है पर भाष्य वार्तिककार ने उनकी संख्या अनंत लिखी है।
श्रीमद्भागवत ६ में नरकों की संख्या २८ है। उनमें २१ नरकों के नाम इस प्रकार हैं - १. तामित्रं २. अंधतामिस्र ३. रौरव ४. महारौरव ५. कुम्भीपाक ६. कालसूत्र ७. असिपत्रवन ८. सूकरमुख ९. अंधकूप १०. कृमिभोजन ११. संदेश १२. तप्तभूमि १३. वज्रकष्टशाल्मली १४. वैतरणी १५. पूयोद १६. प्राणरोध १७. विशसन १८. लालाभक्ष १९. सारमेयादन २०. अवीचि २१. अयःपान।
इन २१ नरकों के अतिरिक्त भी सात नरक और हैं, ऐसी मान्यता भी प्रचलित है। ये इस प्रकार हैं१. क्षार-कर्दम २. रक्षोगण-भोजन ३. शूलप्रोत ४. दन्दशूक ५. अवटनिरोधन ६. पयोवर्तन ७. सूचीमुख।
४०. मज्झिमनिकाय, देवदूत सुत्त ४१. जातक अट्ठकथा, खण्ड ३, पृ. २२, खण्ड ५ पृ. २६९ ४२. सुत्तनिपात अट्ठकथा, खण्ड १, पृ. ५९ ४३. कठोपनिषद् १. १. ३, बृहदारण्यक ४. ४. १०-११, ईशावास्योपनिषद् ३-९ ४४. योगदर्शन-व्यासभाष्य, विभूतिपाद २६ ४५. गणधरवाद, प्रस्तावना, पृष्ठ १५७ ४६. श्रीमद्भागवत (छायानुवाद) पृ. १६४, पंचमस्कंध २६, ५/३६
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