Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ पुष्पिका अप्पेगइएहिं उत्ताण-सेज्जएहि य अप्पेगइएहि थणियाएहिं य, अप्पेगइएहिं पीहागपाएहिं अप्पेगइएहिं परंगणएहिं, अप्पेगइएहिं परक्कममाणेहिं अप्पेगइएहिं पक्खोलणएहिं अप्पेगइएहिं थणं मग्गमाणेहिं, अप्पेगइएहिं खीरं मग्गमाणेहिं अप्पेगइएहिं खेल्लणयं मग्गमाणेहिं, अप्पेगइएहिं खजगं मग्गमाणेहिं अप्पेगइएहिं कूरं मग्गमाणेहिं, पाणियं मग्गमाणेहिं हसमाणेहिं रूसमाणेहिं अक्कोसमाणेहिं अक्कुस्समाणेहिं हणमाणेहिं विप्पलायमाणेहिं, अणुगम्ममाणेहिं रोवमाणेहिं कन्दमाणेहिं विलवमाणेहिं कूवमाणेहिं उक्कूवमाणेहिं निद्धायमाणेहिं पलंवमाणेहिं दहमाणेहिं दंसमाणेहिं वममाणेहिं छेरमाणेहिं मुत्तमाणेहिं मुत्तपुरीसवमिय-सुलित्तोवलित्ता मइलवसणपुच्चडा जाव असुइबीभच्छा परमदुग्गन्धा नो संचाएइ रटकूडेणं सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुञ्जमाणी विहरित्ताए।
४७. तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को भोगती हुई प्रत्येक वर्ष एक युगल संतान को जन्म देकर सोलह वर्ष में बत्तीस बालकों का प्रसव करेगी। तब वह सोमा ब्राह्मणी उन बहुत से दारक-दारिकाओं, कुमार-कुमारिकाओं और बच्चे-बच्चियों में से किसी के उत्तान (उन्मुख - सिर की ओर पैर करके) शयन करने से – सोने से, किसी के चीखने-चिल्लाने से, किसी को जन्मचूंटी आदि दवाई पिलाने से, किसी के घुटने घुटने चलने से, किसी के पैरों पर खड़े होने में प्रवृत्त होने से, किसी के चलते चलते गिर जाने से, किसी के स्तन को टटोलने से, किसी के दूध मांगने से, किसी के खिलौना मांगने से, किसी के खाजा आदि मिठाई मांगने से, किसी के कूर (भात) मांगने से, इसी प्रकार किसी के पानी मांगने से, किसी के हंसने से, रूठ जाने से, गुस्सा करने से - कटु वचन कहने से, झगड़ने से, आपस में मार-पीट करने से, मारकर भाग जाने से, किसी के उसका पीछा करने से, किसी के रोने से, किसी के आक्रन्दन करने से, विलाप करने से, छीना-छपटी करने से, किसी के कराहने से, किसी के ऊँघने से, किसी के प्रलाप करने से, किसी के पेशाब आदि करने से, किसी के उलटी – कै कर देने से, किसी के छेरने (चिरकने) से, किसी के मूतने से, सदैव उन बच्चों के मल-मूत्र वमन से लिपटे शरीर वाली तथा मैले-कुचैले कपड़ों से कांतिहीन यावत् अशुचि से सनी हुई होने से, देखने में बीभत्स और अत्यन्त दुर्गन्धित होने के कारण राष्ट्रकूट के साथ विपुल कामभोगों को भोगने में समर्थ नहीं हो सकेगी। सोमा का विचार
४८. तए णं तीसे सोमाए माहणीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था – ‘एवं खलु अहं इमेहिं बहूहिं दारेगाहि य (जाव) डिम्भियाहि य अप्पेगइएहिं उत्ताणसेज्जएहि य (जाव) अप्पेगइएहिं मुत्तमाणेहिं दुज्जाएहिं दुजम्मएहिं हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहिं जाणं मुत्तपुरीस- वमियसुलित्तोवलित्ता जाव परमदुब्भिगन्धा नो संचाएमि रट्ठकूडेणं सद्धिं जाव भुञ्जमाणी विहरित्तए। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ (जाव) जीवियफले जाओ णं वज्झाओ अवियाउरीओ जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगन्धगन्धियाओ विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुञ्जमाणीओ विहरन्ति। अहं णं अधन्ना अपुण्णा अकयपुण्णा नो संचाएमि रट्ठकूडेणं सद्धिं विउलाई जाव विहरित्तए।'