Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[महाबल
अहीणपडिपुण्णपञ्चिन्दियसरीरं जाव ससिसोमाकारं कन्तं पियदसणं सुरूवं देवकुमारसमभं दारगं पयाहिसि।
६. देवी! तुमने उदार - उत्तम स्वप्न देखा है, तुमने कल्याणकारक यावत् शोभनीय स्वप्न देखा है। देवी! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष्य-दायक, कल्याण-मंगलकारक स्वप्न देखा है। देवानुप्रिय! अर्थलाभ होगा, देवानुप्रिय! भोगलाभ होगा, देवानुप्रिय! पुत्रलाभ होगा, देवानुप्रिय! राज्यलाभ होगा। देवानुप्रिय! परिपूर्ण नौ मास और साढे सात दिन बीतने पर तुम अपने कुल के ध्वज समान, कुल को आनंद देने वाले, कुल की यशोवृद्धि करने वाले, कुल के लिये आधारभूत, कुल में वृक्ष के समान, कुल-वृद्धिकारक, सुकुमाल हाथ-पैर प्रमाणोपेत अंग-प्रत्यंग एवं परिपूर्ण पंचेन्द्रिय युक्त शरीर वाले यावत् चन्द्र के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त (ओजस्वी) प्रियदर्शन, सुरूप एवं देवकुमारवत् प्रभावाले पुत्र का प्रसव करोगी।
७. से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विनायपरियणमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कन्ते वित्थिण्णविउलबलवाहणे रजवई राया भविस्सइ। तं उराले णं तुमे, जाव सुमिणे दिठे, आरोग्ग-तुट्ठि० जाव मङ्गलकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिठेत्ति कटू पभावइं देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहइ।
७. वह पुत्र भी बालभाव से मुक्त हो कर विज्ञ एवं परिणत - पुष्ट शरीर हो युवावस्था को प्राप्त करके शूरवीर, पराक्रमी, विस्तीर्ण - विशाल और विपुल बल (सेना) तथा वाहन वाले राज्य का अधिपति - राजा होगा। अतएव तुमने उदार यावत् स्वप्न देखा है, देवी! तुमने आरोग्य, तुष्टिप्रद, यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है, इस प्रकार कह कर इष्ट वाणी से इसी बात को दूसरी और तीसरी बार भी प्रभावती देवी से कहा।
८. तए णं सा पभावई देवी बलस्स रन्नो अन्तियं एयमढं सोच्चा निसम्म हट्टतुटु० करयल जाव एवं वयासी - ‘एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं देवाणुप्पिया! असंदिद्धमेयं देवाणुप्पिया! इच्छियमेयं देवाणुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया! से जहेयं तुब्भे वयह' त्ति कटु तं सुविणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी नाणामणि-रयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुढेइ अब्भुट्टित्ता अतुरियमचवल जाव गईए सए सयणिजे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिजसिं निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासि - ‘मा मे से उत्तमे पहाणे मङ्गल्ले सुविणे अन्नेहिं पावसुमिणेहि पडिहम्मिसइ' त्ति कटु देवगुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मङ्गलाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुविणजागरियं पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ।
८. बल राजा से इस फलकथन को सुनकर और हृदय में धारण कर प्रभावती देवी हृष्ट-तुष्ट हो यावत् दोनों हाथ जोड़कर अंजलि पूर्वक इस प्रकार बोली – देवानुप्रिय! आपने जो कहा, वह इसी प्रकार है, देवानुप्रिय! वह यथार्थ है, देवानुप्रिय! सत्य है, देवानुप्रिय! संदेहरहित है देवानुप्रिय! वह मुझे