Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ १३२ ] [महाबल वाली दासियां, आठ भंडागारिणी (भंडार में काम करने वाली)दासियां, आठ पुस्तकें आदि पढ़ कर सुनाने वाली दासियां, आठ पुष्पधारिणी दासियां, आठ जल लाने वाली दासियां, आठ वलिकर्म करने वाली (लौकिक मांगलिक कार्य करने वाली) दासियां, आठ सेज बिछाने वाली, आठ आभ्यन्तर और आठ बाह्य प्रतिहारी दासियां, आठ माला गूंथने वाली दासियां, आठ प्रेषणकारिणी दासियां (संदेशवाहक दासियां) तथा इनके अतिरिक्त बहुत सा हिरण्य, स्वर्ण, वस्र और विपुल धन, कनक यावत् सारभूत धन-वैभव दिया, जो सात कुलवंश परंपरा तक इच्छानुसार देने, भोग-परिभोग करने के लिये पर्याप्त था। उस महाबल कुमार ने भी अपनी प्रत्येक पत्नी को एक-एक हिरण्य कोटि-स्वर्ण कोटि दी, एक-एक उत्तम मुकुट दिया, इस प्रकार पूर्वोक्त सभी वस्तुएं यावत् एक-एक दूती दी तथा बहुत सा हिरण्य-स्वर्ण आदि दिया, जो सात पीढ़ी तक भोगने के लिये पर्याप्त था। तत्पश्चात् वह महाबल कुमार जमाली के समान यावत् प्रासाद में रह कर आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। २४. तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे जाइ-संपन्ने, वण्णओ, जहा केसिसामिस्स, जाव पञ्चहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणापुरे नगरे, जेणेव सहसम्बवणे उजाणे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडगतिय० जाव परिसा पज्जुवासइ। २४. उस काल और उस समय केशी स्वामी के समान जातिसम्पन्न आदि विशेषणों से युक्त अर्हत् विमल के प्रपौत्र शिष्य (शिष्यानुशिष्य) धर्मघोष नामक अनगार यावत् पांच सौ अनगारों के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए ग्रामानुग्राम गमन करते हुए हस्तिानापुर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। ___ तब हस्तिनापुर नगर के शृंगाटकों, त्रिकों आदि में उनके आगमन की चर्चा होने लगी यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। २५. तए णं तस्स महब्बलस्स कुमारस्स तं महया जणसई वा जणवूहं वा एवं जहा जमाली तहेव चिन्ता, तहेव कञ्चुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, कञ्चुइज्जपुरिसो वि तहेव अक्खाइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जाव निगच्छइ। एवं खलु देवाणुप्पिया, विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे, सेसं तं चेव जाव सो वि तहेव रहवरेणं निगच्छइ। धम्मकहा जहा केसिसामिस्स। सो वि तहेव अम्मापियरो आपुच्छइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अन्तियं मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। तहेव वुत्तपडिवुत्तया, नवरं

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180