Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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परिशिष्ट-१ ]
[ १३१
श्रेष्ठ हा
तए णं से महब्बले कुमारे उप्पिं पासायवरगए जहा जमाली जाव विहरइ।
२३. तब माता-पिता ने उस महाबल कुमार को यह और इस प्रकार प्रीतिदान दिया - आठ कोटि हिरण्य (चांदी की) मुद्राएं, आठ कोटि स्वर्ण मुद्राएं, आठ श्रेष्ठ मुकुट, आठ कुंडलयुगल, आठ
1. आठ उत्तम अर्ध हार. आठ उत्तम एकावली हार, इसी प्रकार आठ मक्तावली. कनकावली. रत्नावली, आठ उत्तम कटक युगल, त्रुटित युगल (बाजूबन्दों की जोड़ी), उत्तम आठ क्षौम युगल (रेशमी वस्त्रों की जोड़ी)। इसी प्रकार वटक युगल (वस्त्र विशेष की जोड़ी) आठ उत्तम सूती वस्त्रयुगल, आठ दुकूल युगल, आठ श्री, आठ ह्री, आठ-आठ धृत्ति, कीर्ति, बुद्धि, एवं लक्ष्मी की प्रतिकृतियां, आठ नन्द, आठ भद्र, आठ उत्तम तल ताड़ वृक्ष दिए, जो सभी रत्न निर्मित थे। अपने उत्तम भवन की केतु (चिह्न) रूप आठ श्रेष्ठ ध्वजा, दस हजार गायों के एक ब्रज के हिसाब से आठ ब्रज-गोकुल, बत्तीस मनुष्यों द्वारा किये जाने वाले एक नाटक के हिसाब से आठ नाटक, आठ उत्तम अश्व (घोड़े) दिए जो सभी रत्नों से बने हुये थे और श्रीगृह-कोष के प्रतिरूप थे। आठ उत्तम हाथी दिये। ये भी रत्नों के बने हुए और भांडागार के समान शोभासम्पन्न थे। आठ यान प्रवर (श्रेष्ठ रथ), आठ उत्तम युग्य (एक प्रकार का वाहन) इसी प्रकार आठ-आठ शिविकाएँ, स्यन्दमानी, गिल्ली, थिल्ली (यान विशेष), विकट यान (खुले रथ), पारियानिक (क्रीड़ा रथ), सांग्रामिक रथ (युद्ध में काम आने वाले रथ), आठ अश्व प्रवर, आठ श्रेष्ठ हाथी, दस हजार घरों वाले श्रेष्ठ आठ ग्राम, आठ श्रेष्ठ दास, ऐसे ही आठ दासी, आठ उत्तम किंकर, कंचुकी, वर्षधर (अंत:पुर रक्षक), महत्तरक, आठ सोने के. आठ चांदी के. आठ सोने-चांदी के अवलम्बन दीप (लटकने वाले दीपक-झाडफानस), आठ स्वर्ण के, आठ चांदी के और आठ स्वर्ण-चांदी के उत्कंचन दीपक (दंडयुक्त दीपक-समाई), इसी तरह तीन प्रकार के पंजर दीप, आठ स्वर्ण के थाल, आठ चांदी के थाल, आठ स्वर्ण-रजतमय थाल, आठ सोने, चांदी और सोने-चांदी की पात्रियां, आठ तसलियां, आठ मल्लक (कटोरे), आठ तलिका (रकाबियां), आठ कलाचिका (चमचा-सींका), आठ अवएज (पात्र-विशेष-तापिका हस्तकसंडासी), आठ अवयक्क (चीमटा), आठ पादपीठ (वाजौठ), आठ भिषिका (आसन विशेष), आठ करोटिका (लोटा), आठ पलंग, आठ प्रतिशैया (खाट), आठ-आठ हंसासन, क्रोचासन, गरुडासन, उन्नतासन, प्रणतासन, दीर्घासन, भद्रासन, पक्षासन, मकरासन, दिशासौवस्तिकासन, तथा आठ तेलसमुद्गक आदि राजप्रश्नीय सूत्रगत वर्णन के समान यावत् आठ सर्षपसमुद्गक, आठ कुब्जा दासी इत्यादि औपपातिक सूत्र के अनुसार यावत् आठ पारस देश की दासियां, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी चेटिकाएँ, आठ चामर, आठ चामरधारिणी चेटिकाएँ, आठ पंखे, आठ पंखाधारिणी चेटिकाएँ, आठ करोटिका धारिणी चेटिकाएँ, आठ क्षीर धात्रियां (दूध पिलाने वाली धायें) यावत् आठ अंकधात्रियां, आठ अंगमर्दिकाएँ, आठ स्नान कराने वाली दासियां, आठ प्रसाधन (शृंगार) करने वाली दासियां, आठ वर्णक (चंदन आदि विलेपन) पीसने-घिसने वाली दासियां, आठ चूर्ण पीसने वाली दासियां, आठ कोष्ठगार में काम करने वाली दासियां, आठ हास-परिहास करने वाली दासियां, आठ अंगरक्षक दासियां, आठ नृत्य-नाटककारिणी दासियां, आठ कौटुम्बिक दासियां (अनुचरी), आठ रसोई बनाने