Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 180
________________ परिशिष्ट-२ ] [ १३७ भावभंग ४. तब उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक के माता-पिता विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार, वस्त्र, गंध, माला और अलंकारों से कलाचार्य का सत्कार-सम्मान करेंगे और जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान (भेंट) देंगे और देकर ससम्मान विदा करेंगे। ५. तए णं से दढपइन्ने दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते बावत्तरिकलापण्डिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए नवङ्गसुत्तपडिबोहए गीयरई गन्धव्वनट्टकुसले सिङ्गारागारचारुवेसे संगयगयहसियभणियचिट्ठियविलाससंलावनिउणजुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ। ___५. इसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बालभाव से मुक्त हो विज्ञानयुक्त परिपक्व युवावस्थासंपन्न हो जायेगा। बहत्तर कलाओं में पंडित होगा, बाल्यावस्था के कारण मनुष्य के जो नौ अंग (दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, जीभ, त्वचा और मन) सुप्त-से अर्थात् अव्यक्त चेतना वाले रहते हैं, वे जागृत हो जायेंगे - अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने में सक्षम हो जायेंगे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो जायेगा। वह गीत संगीत का अनुरागी और नृत्य में कुशल हो जायेगा। अपने सुन्दर वेश से श्रृंगार का आगार जैसा प्रतीत होगा। उसकी चाल, हास्य, भाषण, शरीर और नेत्र की गिमाएँ आदि सभी संगत होंगी। पारस्परिक आलाप-संलाप एवं व्यवहार में निपुण-कुशल हो जायेगा। अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध, बाहुयुद्ध करने एवं अपने बाहुबल से विपक्षी का मर्दन करने में सक्षम एवं भोग भोगने की सामर्थ्य से संपन्न हो जायेगा तथा साहसी ऐसा हो जायेगा कि विकालचारी (मध्य रात्रि में इधर-उधर आना-जाना) होगा और उस समय भयभीत नहीं होगा। ६. तए णं तं दढपइन्ने दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जाव वियालचारि च वियाणित्ता विउलेहिं अन्नभोगेहि य पाणभोगेहि य लेणभोगेहि य वत्थभोगेहि य सयणभोगेहि य उवनिमन्तेहिन्ति। ६. तब उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को बाल्यावस्था से मुक्त यावत् विकालचारी जानकर माता-पिता विपुल अन्न भोगों, पान भोगों, प्रासाद भोगों, वस्त्र भोगों और शैया भोगों के योग्य भोगों को भोगने के लिये आमंत्रित करेंगे - भोगोपभोग भोगने का संकेत करेंगे। . ७. तए णं से दढपइन्ने दारए तेहिं विउलेहिं अन्नभोएहिं जाव सयणभोगेहिं नो गिज्झिहिइ नो मुच्छिहिइ नो अज्झोववजिहिइ। से जहानामए पउमुप्पले इ वा पउमे इ वा जाव सयसहस्सपत्ते इ वा पङ्के जाए जले संवुड्ढे नोवलिप्पइ जलरएणं एवामेव दढपइन्ने वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवड्ढिए नोवलिप्पहिइ मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणेणं। से णं तहारूवाणं थेराणं अन्तिए केवलं बोहिं बुझिहिइ बुज्झिहित्ता मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं अणगारे भविस्सइ, ईरियासमिए जाव सुहुयहुयासणो इव तेयसा जलन्ते। ७. लेकिन वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक उन विपुल अन्न रूप भोग्य पदार्थों यावत् शयन रूप भोग्य पदार्थों में आसक्त नहीं होगा, गृद्ध नहीं होगा, मूच्छित नहीं होगा और अनुरक्त नहीं होगा। नीलकमल, पद्मकमल यावत् शतपत्र और सहस्रपत्र कमल जैसे कीचड़ में उत्पन्न होते हैं, जल में वृद्धिगत होते हैं,

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