Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 168
________________ परिशिष्ट-१ ] [ १२५ कन्ताहिं जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी - ‘एवं खलु देवाणुप्पिए! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा, बावत्तरि सव्वसुविणा दिट्ठा। तत्थ णं देवाणुप्पिए तित्थगरमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा तं चेव जाव अनयरं एगं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुज्झन्ति। इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिढे, तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिढे' त्ति कटु पभावइं देविं ताहिं इट्ठाहिं कन्ताहिं जाव दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहइ। १४. स्वप्नलक्षणपाठकों से उपर्युक्त स्वप्न-फल सुनकर एवं अवधारित कर बल राजा हृष्ट-तुष्ट हुआ। वह हाथ जोड़कर यावत् अंजलि करके उन स्वप्नपाठकों से इस प्रकार बोला – देवानुप्रियो! जैसा आपने स्वप्नफल बताया, वह उसी प्रकार है। इस प्रकार कहकर उसने स्वप्न के अर्थ को समीचीन रूप में स्वीकार किया और फिर उन स्वप्नलक्षण-पाठकों का विपुल अशन पान, खादिम, स्वादिम, पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकारों से सत्कार-सम्मान किया, सत्कृत सम्मानित करके आजीविका के योग्य पुष्कल प्रीतिदान देकर उन्हें विदा किया। इसके बाद सिंहासन से उठकर जहाँ प्रभावती देवी थी, वहाँ आया। आकर इष्ट, कान्त यावत् वार्तालाप करते हुए प्रभावतीदेवी से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिये! स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न सब मिलाकर बहत्तर स्वप्न बताए हैं। उनमें से देवानुप्रिये! तीर्थंकर की माता अथवा चक्रवर्ती की माता चौदह स्वप्न देखती है, इत्यादि पूर्वोक्त कथन यहाँ जान लेना चाहिये। देवानुप्रिये! तुमने इनमें से एक महास्वप्न देखा है। देवी! तुमने इनमें से एक उत्तम महास्वप्न देखा है यावत् जन्म लेकर बालक राज्याधिपति राजा होगा। अथवा भावितात्मा अनगार होगा। देवी! तुमने श्रेष्ठ स्वप्न को देखा है, इस प्रकार से ईष्ट, कान्त यावत् मधुर वाणी से दो तीन बार (बारबार) कहकर प्रभावती देवी की प्रशंसा की। १५. तए णं सा पभावई देवी बलस्स रन्नो अन्तियं एयमठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु करयल जाव एवं वयासी - "एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव तं सुविणं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रन्ना अब्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्त जाव अब्भुढेइ। अतुरियमचवल जाव गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणमणुपविट्ठा। १५. तब प्रभावती देवी बल राजा का कथन सुनकर और हृदयंगत कर हृष्ट-तुष्ट होकर यावत् हाथ जोड़कर इस प्रकार बोली – देवानुप्रिय! यह ऐसा ही है, जैसा आप कहते हैं यावत् उसने स्वप्न फल को भलीभांति ग्रहण किया। बल राजा की अनुमति लेकर अनेक प्रकार के मणिरत्नों के चित्रामों से युक्त भद्रासन से उठी और बिना किसी शीघ्रता तथा चपलता के यावत् (हंस) गति से चलकर अपने आवासगृह में आई। भवन में प्रविष्ट हुई। १६. तए णं सा पभावई देवी बहाया कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकारविभुसिया तं गब्भं नाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइमहुरेहिं उउभयमाणसुहेहिं भोयणच्छायणगन्धमल्लेहिं जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य

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