Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग ५ : प्रथम अध्ययन ]
[१०९
पामोक्खा दसारा, देवीओ भाणियव्वाओ, जाव अणङ्गसेणापामोक्खा अणेगा गणियासहस्सा अन्ने य बहवे राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईओ ण्हाया जाव पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया जहाविभवइड्डीसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया गयगया पायचारविहारेणं वंदावन्दएहिं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल कण्हं वासुदेवं जएण विजएणं वद्धावेन्ति।
तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुम्बियपुरिसे एवं वयासी – "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं कप्पेह हयगयरहपवर०' जाव पच्चप्पिणन्ति।
तए णं से कण्हे वासुदेवे मजणघरे जाव दुरूढे, अटुट्ठ मङ्गलगा, जहा कूणिए, सेयवरचामरेहि उद्धव्वमाणेहिं समुद्दविजयपामोक्खहिं दसहिं दसारेहिं जाव सत्थवाहप्पभिईहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव रवेणं बारवई नयरि मझमझेणं, "" सेसं जहा कूणिओ जाव पजुवासइ।
१०. उस सामुदानिक भेरी को जोर-जोर से बजाये जाने पर समुद्रविजय आदि दसार, देवियाँ यावत् अनंगसेना आदि अनेक सहस्र गणिकाएँ तथा अन्य बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति स्नान कर यावत् प्रायश्चित्त-मंगलविधान कर सर्व अलंकारों से विभूषित हो यथोचित अपने-अपने वैभव ऋद्धि सत्कार एवं अभ्युदय के साथ कोई घोड़े पर आरूढ़ होकर, कोई हाथी पर आरूढ़ होकर और कोई पैदल ही जनसमुदाय को साथ लेकर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर यावत् कृष्ण वासुदेव का जय-विजय शब्दों से अभिनन्दन किया।
तदनन्तर कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को यह आज्ञा दी - देवानुप्रियो! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तिरत्न को विभूषित करो और अश्व, गज, रथ एवं पदातियों से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यावत् मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ।
तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने स्नानगृह में प्रवेश किया। यावत् स्नान करके, वस्त्रालंकार से विभूषित होकर वे आरूढ़ हुए। प्रस्थान करने पर उनके आगे-आगे आठ मांगलिक द्रव्य चले और कूणिक राजा के समान उत्तम श्रेष्ठ चामरों से विंजाते हुए समुदविजय आदि दस दसारों यावत् सार्थवाह आदि के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों के साथ द्वारवती नगरी के मध्य भाग में से निकले इत्यादि वर्णन समझ लेना चाहिये, यावत् पर्युपासना करने लगे - यहाँ तक का शेष समस्त वर्णन कूणिक के समान जानना चाहिये। निषध कुमार का दर्शनार्थ गमन
११. तए णं तस्स निसहस्स कुमारस्स उप्पिं पासायवरगयस्स तं महया जणसदं च .... जहा जमाली, जाव धम्म सोच्चा निसम्म वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- 'सदहामि णं भंते, निग्गन्थं पावयणं, जहा चित्तो, जाव सावगधम्म पडिवजइ, पडिवजित्ता पडिगए।'
११. तब उस उत्तम प्रासाद पर रहे हुए निषधकुमार को उस जन-कोलाहल आदि को सुनकर
१. देखिए औपपातिकसूत्र