Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ वर्ग ५ : प्रथम अध्ययन ] [११५ तमढं आराहिइ, आराहित्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुझिहिइ जाव सव्वदुक्खाणं अन्तं काहिइ।' निक्खेवओ - एवं खलु जम्बू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं वण्हिदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते त्ति बेमि। एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संहगणी-अणुसारेण अहीणमइरित्त एक्कारससु वि। ॥ पञ्चमो वग्गो समत्तो॥ . २०. तदनन्तर वरदत्त अनगार ने पूछा - 'भदन्त!' वह निषध देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के पश्चात् वहाँ से च्यवन करके कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? भगवान् ने उत्तर दिया - 'आयुष्मन् वरदत्त! इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उन्नाक नगर में विशुद्ध पितृवंश वाले राजकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। तब वह बाल्यावस्था के पश्चात् समझदार होकर युवावस्था को प्राप्त करके तथारूप स्थविरों से केवल बोधि-सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कर अगार त्याग कर अनंगार प्रव्रज्या को अंगीकार करेगा। वह ईर्यासमिति से सम्पन्न यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार होगा और बहुत से चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, दसमभक्त, द्वादशभक्त, मासखमण, अर्धमासखमणरूप विचित्र तपसाधना द्वारा आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमणावस्था का पालन करेगा। श्रमण साधना का पालन करके मासिक संलेखना द्वारा आत्मा को शुद्ध करेगा, साठ भोजनों का अनशन द्वारा त्याग करेगा और जिस प्रयोजन के लिये नग्नभाव, मंडभाव, स्नानत्याग यावत दांत धोने का त्याग, छत्र का त्याग, उपानह (जूता, पादुका आदि) का त्याग तथा पाट पर सोना, काष्ठ तृण आदि पर सोना-बैठना, केशलोंच, ब्रह्मचर्य ग्रहण करना, भिक्षार्थ पर-गृह में प्रवेश करना, यथापर्याप्त भोजन की प्राप्ति होना या न होना, ऊँचे-नीचे अर्थात् तीव्र और सामान्य ग्रामकंटकों (कष्टों) को सहन किया जाता है, उस साध्य की अराधना करेगा और आराधना करके चरम श्वासोच्छ्वास में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा - 'इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने वृष्णिदशा (वह्निदशा) के प्रथम अध्ययन का यह आशय प्रतिपादित किया है, ऐसा मैं कहता हूँ।' शेष अध्ययन - इसी प्रकार से शेष ग्यारह अध्ययनों का आशय भी संग्रहणी-गाथा के अनुसार बिना किसी हीनाधिकता के जैसा का तैसा जान लेना चाहिये। ॥ पंचम वर्ग समाप्त॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180