Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 153
________________ ११०] [ वह्निदशा कौतूहल हुआ और वह भी जमालि के समान ऋद्धि वैभव के साथ प्रासाद से निकला यावत् भगवान् के समवसरण में धर्म श्रवण कर और उसे ह्रदयंगम करके भगवान् को वंदन-नमस्कार किया। वंदननमस्कार करके इस प्रकार के उद्गार व्यक्त किए - भदन्त! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ इत्यादि। चित्त सारथी के समान यावत् उसने श्रावकधर्म अंगीकार किया और श्रावकधर्म अंगीकार करके वापिस लौट गया। वरदत्त अनगार की जिज्ञासा : अरिष्टनेमि का समाधान ____ १२. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमिस्स अन्तेवासी वरदत्ते नामं अणगारे उराले जाव विहरइ। तए णं से वरदत्ते अणगारे निसढं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी - 'अहो णं, भंते, निसढे कुमारे इठे इट्ठरूवे कंते कंतरूवे, एवं पिए पियरूवे मणुन्नए, मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे पियदंसणे सुरूवे। निसढेणं भंते! कुमारेण अयमेयारूवे माणुस्सइड्डी किण्णा लद्धा, किण्णा पत्ता ?' पुच्छा जहा सूरियाभस्स। एवं खलु वरदत्ता! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे रोहीडए नामं नयरे होत्था, रिद्ध० । मेहवण्णे उज्जाणे। माणिदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे। तत्थ णं रोहीडए नयरे महब्बले नामं राया। पउमावई नामं देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि सीहं सुमिणे ... , एवं जम्मणं भाणियव्वं जहा महाबलस्स, नवरं वीरङ्गओ नामं, बत्तीसओ दाओ, बत्तीसाए रायवरकन्नगाणं पाणिं जाव ओगिजमाणे ओगिज्जमाणे पाउसवरिसारत्तसरयहेमन्तगिम्हवसन्ते छप्पि उऊ जहाविभवे समाणे इढे सद्दफरिसरसरूवगंधे पञ्चविहे माणुसग्गे कामभोए भुञ्जमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सिद्धत्था नाम आयरिया जाइसंपन्ना जहा केसी, नवरं बहुस्सुया बहुपरिवारा जेणेव रोहीडए नयरे, जेणेव मेहवण्णे उज्जाणे, जेणेव माणिदत्तस्स जक्खस्स उक्खाययणे, तेणेव उवागए अहापडिरूवं जाव विहरइ। परिसा निग्गया। १२. उस काल और उस समय में अर्हत् अरिष्टनेमि के प्रधान शिष्य वरदत्त नामक अनगार विचरण कर रहे थे। उन वरदत्त अनगार ने निषधकुमार को देखा। देखकर जिज्ञासा हुई यावत् अरिष्टनेमि भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार निवेदन किया – अहो भगवन्! यह निषधकुमार इष्ट, इष्ट रूप वाला, कमनीय, कमनीय रूप से सम्पन्न एवं प्रिय, प्रिय रूप वाला, मनोज्ञ, मनोज्ञ रूप वाला, मणाम, मणाम रूप वाला, सौम्य, सौम्य रूप वाला, प्रियदर्शन और सुन्दर है! भदन्त! इस निषधकुमार को इस प्रकार की यह मानवीय ऋद्धि कैसे उपलब्ध हुई ? इत्यादि सूर्याभदेव के विषय में गौतम स्वामी की तरह (वरदत्त मुनि ने) प्रश्न किया। __ अर्हत् अरिष्टनेमि ने वरदत्त अनगार का समाधान करते हुए कहा - आयुष्मन् वरदत्त! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में रोहीतक नाम का नगर था। वह धन धान्य से समृद्ध था इत्यादि। वहाँ मेघवन नाम का उद्यान था और मणिदत्त यक्ष का यक्षायतन था। उस रोहीतक नगर के राजा का नाम महाबल था और रानी का नाम पद्मावती था। किसी एक रात उस पद्मावती

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