Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग ४ : प्रथम अध्ययन ]
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___तदनन्तर सुदर्शन गाथापति ने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम भोजन बनवाया और मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमंत्रित किया यावत् भोजन करने के पश्चात् शुद्ध-स्वच्छ होकर अभिनिष्क्रमण कराने के लिये कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर उन्हें आज्ञा दी – देवानुप्रियो! शीघ्र ही दीक्षार्थिनी भूता दारिका के लिये सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाय ऐसी शिविका (पालकी) लाओ और लाकर यावत् कार्य होने की सूचना दो।
तब वे कौटुम्बिक पुरुष यावत् आदेशानुसार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाते हैं।
तत्पश्चात् उस सुदर्शन गाथापति ने स्नान की हुई और आभूषणों से विभूषित शरीर वाली भूता दारिका को पुरुषसहस्रवाहिनी शिविका पर आरूढ़ किया और वह मित्रों, जातिबांधवों आदि के साथ यावत् वाद्यघोषों पूर्वक राजगृह नगर के मध्य भाग में से होते हुए जहाँ गुणशिलक चैत्य था, वहाँ आया और छत्रादि तीर्थंकरातिशयों को देखा। देखकर पालकी को रोका और उससे भूता दारिका को उतारा।
इसके बाद माता-पिता उस भूता दारिका को आगे करके जहाँ पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु विराजमान थे, वहाँ आये और तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार किया तथा इस प्रकार निवेदन किया - देवानुप्रिय! यह भूता दारिका हमारी एकलौती पुत्री है। यह हमें इष्ट-प्रिय है। देवानुप्रिय! यह संसार के भय से उद्विग्न-भयभीत होकर आप देवानुप्रिय के निकट मुंडित होकर यावत् प्रव्रजित होना चाहती है। देवानुप्रिय! हम इसे शिष्या-भिक्षा के रूप में आपको समर्पित करते हैं। आप देवानुप्रिय इस शिष्या-भिक्षा को स्वीकार करें।
अर्हत् पार्श्व प्रभु ने उत्तर दिया - 'देवानुप्रिय! जैसे सुख उपजे वैसा करो।'
तब उस भूता दारिका ने पार्श्व अर्हत् की अनुमति-स्वीकृति सुनकर हर्षित हो, उत्तर-पूर्व दिशा में जाकर स्वयं आभरण - अलंकार उतारे। यह वृत्तान्त देवानन्दा' के समान कह लेना चाहिये। अर्हत् प्रभु पार्श्व ने उसे प्रव्रजित किया और पुष्पचूलिका आर्या को शिष्या रूप में सौंप दिया। उसने पुष्पचूलिका आर्या से शिक्षा प्राप्त की यावत् वह गुप्त ब्रह्मचारिणी हो गई। शरीरबकुशिका भूता
८. तए णं सा भूया अज्जा अन्नया कयाइ सरीरबाउसिया जाया यावि होत्था। अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवइ, पाए धोवइ, एवं सीसं धोवइ, मुहं धोवइ थणगन्तराई धोवइ, कक्खन्तराई धोवइ, गुज्झन्तराई धोवइ, जत्थ जत्थ वि य णं ठाणं वा सेजं वा निसीहियं वा चेएइ, तत्थ तत्थ वि य णं पुव्वमेव पाणएणं अब्भुक्खेइ, तओ पच्छा ठाणं वा सेजं वा निसीहियं वा चेएइ।
तए णं ताओ पुष्फचूलाओ अजाओ भूयं अजं एवं वयासी - 'अम्हे णं देवाणुप्पिया! समणीओ निग्गन्थीओ इरियासमियाओ (जाव) गुत्तबम्भचारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं सरीरबाओसियाणं होत्तए। तुमं च णं, देवाणुप्पिए, सरीरबाओसिया अभिक्खणं अभिक्खणं हत्थे धोवसि (जाव) निसीहियं चेएसि। तं णं तुमं देवाणुप्पिए! एयस्स ठाणस्स आलोएहि' त्ति। सेसं