Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ वर्ग ४ : प्रथम अध्ययन ] धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा। तए णं सा भूया दारिया निययपरिवारपरिवुडा रायगिहं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्ताईए तित्थयरातिसए पासइ, पासित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहा पच्चोरुहित्ता चेडीचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो (जाव) पज्जुवासइ। तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए य महइ० .....। धम्मकहा। धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ० वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी – 'सदहामि णं भन्ते! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं (जाव) पव्वइत्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिए।' ६. उस काल और उस समय में पुरुषादानीय एवं नौ हाथ की अवगाहना वाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे। दर्शन करने के लिये परिषद् निकली। तब वह भूता दारिका इस संवाद को सुनकर हर्षित और संतुष्ट हुई और माता-पिता के पास गई। वहाँ जाकर उसने उनकी अनुमति-आज्ञा मांगी – 'हे भात-तात! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् अनुक्रम से विचरण करते हुये यावत् शिष्यगण से परिवृत होकर विराजमान हैं। अतएव हे मात-तात! आपकी आज्ञा-अनुमति लेकर मैं पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् की पादवंदना के लिये जाना चाहती हूँ। माता-पिता ने उत्तर दिया - 'देवानुप्रिये! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो।' तत्पश्चात् भूता दारिका ने स्नान किया यावत् शरीर को अलंकृत करके दासियों के समूह के साथ अपने घर से निकली। निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला (सभाभवन-बैठक) थी, वहाँ आई और आकर उत्तम धार्मिक यान-रथ पर आसीन हुई। इसके बाद वह भूता दारिका अपने स्वजन-परिवार को साथ लेकर राजगृह नगर के मध्य भाग में से निकली। निकलकर गुणशिलक चैत्य के समीप आई और आकर तीर्थंकरों के छत्रादि अतिशय देखे (देखकर धार्मिक रथ से नीचे उतरकर दासी-समूह के साथ जहाँ पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु विराजमान थे, वहाँ आई। आकर उसने तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा करके वंदना की यावत् पर्युपासना करने लगी। तदनन्तर पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु ने उस भूता बालिका और अति विशाल परिषद् को धर्मदेशना सुनाई। धर्मदेशना सुनकर और उसे हृदयंगम करके वह हृष्ट-तुष्ट हुई। फिर भूता दारिका ने वंदन-नमस्कार किया और इस प्रकार उद्गार प्रकट किए - 'भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ - श्रद्धालु हूँ - यावत् निर्ग्रन्थ-प्रवचन को अंगीकार करने के लिये तत्पर हूँ। वह वैसा ही है, जैसा आपने विवेचन किया है, किन्तु हे भदन्त! माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर लूँ, तब मैं यावत्

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180