Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग ३ : चतुर्थ अध्ययन ]
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. ४८. ऐसी अवस्था में किसी समय रात को पिछले पहर में अपनी और अपने कुटुम्ब की स्थिति पर विचार करते हुये उस सोमा ब्राह्मणी को इस प्रकार का विचार उत्पन्न होगा - 'मैं इन बहुत से अभागे, दुःखदायी एक साथ थोड़े-थोड़े दिनों के बाद उत्पन्न हुये छोटे-बड़े और नवजात बहुत से दारक-दारिकाओं यावत् बच्चे-बच्चियों में से कोई सिर की ओर पैर करके सोने यावत् पेशाब आदि करने से, उनके मल-मूत्र वमन आदि आदि से लिपटी रहने के कारण अत्यन्त दुर्गन्धमयी होने से राष्ट्रकूट के साथ भोगों का अनुभव नहीं कर पा रही हूँ। वे माताएँ धन्य हैं यावत् उन्होंने मनुष्यजन्म और जीवन का सुफल पाया है, जो बंध्या है, प्रजननशीला नहीं होने से जानु-कूपर की माता होकर सुरभि सुगंध से सुवासित होकर विपुल मनुष्य संबंधी भोगोपभोगों को भोगती हुई समय बिताती हैं। लेकिन मैं ऐसी अधन्य, पुण्यहीन, निर्भागी हूँ कि राष्ट्रकूट के साथ विपुल भोगों को नहीं भोग पाती
सुव्रता आर्या का आगमन
४९. तेणं कालेणं तेणं समयेणं सुव्वयाओ नाम अज्जाओ इरियासमियाओ जाव बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं ... जेणेव विभेले संनिवेसे . अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरन्ति।
तए णं तासिं सुव्वयाणं अजाणं एगे संघाडए विभेले संनिवेसे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे रट्टकूडस्स गिहं अणुपविढे। तए णं सा सोमा माहणी ताओ अजाओ एजमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्ठ० खिप्पामेव आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण ४ पडिलाभेत्ता एवं वयासी -
एवं खलु अहं अज्जाओ! रट्ठकूडेणं सद्धिं विउलाई जाव संवच्छरे संवच्छरे जुगलं पयामि, सोलसहिं संवच्छरेहिं बत्तीसं दारगरूवे पयाया। तए णं अहं तेहिं बहूहिं दारएहि य जाव डिम्भियाहि य अप्पेगइएहिं उत्ताणसेजएहिं जाव मुत्तमाणेहिं दुजाएहिं जाव नो संचाएमि विहरित्तए। तं इच्छामि णं अहं अजाओ! तुहं अन्तिए धम्मं निसामेत्तए।' ।
तए णं ताओ अजाओ सोमाए माहणीए विचित्तं (जाव) केवलिपन्नत्तं धम्म परिकहेन्ति।
४९. सोमा ने जब ऐसा विचार किया कि उस काल और उसी समय ईर्या आदि समितियों से युक्त यावत् बहुत-सी साध्वियों के साथ सुव्रता नाम की आर्याएँ पूर्वानुपूर्वी क्रम से गमन करती हुई उस विभेल सन्निवेश में आएँगी और अनगारोचित अवग्रह लेकर स्थित होंगी।
तदनन्तर उन सुव्रता आर्याओं का एक संघाड़ा (समुदाय) विभेल संनिवेश के उच्च, सामान्य और मध्यम परिवारों में गृहसमुदानी भिक्षा के लिये घूमता हुआ राष्ट्रकूट के घर में प्रवेश करेगा। तब वह सोमा ब्राह्मणी उन आर्याओं को आते देखकर हर्षित और संतुष्ट होगी। संतुष्ट होकर शीघ्र ही अपने आसन से उठेगी, उठकर सात-आठ डग उनके सामने आयेगी। आकर वन्दन-नमस्कार करेगी और फिर विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम भोजन से प्रतिलाभित करके इस प्रकार कहेगी - 'आर्याओं!