Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
का जो परिणाम काल कुमार के लिये हुआ, उसी को स्पष्ट करने के लिये प्रज्ञापनी भाषा में काली देवी को बतलाया कि अब तुम्हारा पुत्र कालगत हो गया है, अतः तुम उसे जीवित नहीं देख सकोगी। साथ ही भगवान् ने यह भी देखा कि पुत्र-वियोग ही काली के वैराग्य का कारण बनेगा।
काली का दुखित होना
१०. तए णं सा काली देवी समणस्स भगवओ अन्तियं एयमट्ठे सोच्चा निसम्म महया पुत्तसोएणं अफ्फुन्ना समाणी परसुनियत्ता विव चम्पगलया धस त्ति धरणीयलंसि सव्वङ्गेहिं संनिवडिया।
तणं सा काली देवी मुहुत्तन्तरेण आसत्था समाणी उट्ठाए उट्ठेइ उट्ठत्ता समणं भगवं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी 'एवमेयं भंते, असंदिद्धमेयं भंते, सच्चे णं भंते! एसमट्ठे, जहेयं तुब्भे वयह' त्ति कट्टु समणं भगवं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ दुरूहित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
१०. श्रमण भगवान् महावीर के इस कथन को सुनकर और हृदय में धारण करके काली रानी घोर. पुत्र-शोक से अभिभूत - उद्विग्न होकर कुल्हाड़ी से खंडित - काटी गई चम्पकलता के समान पछाड़ खाकर धड़ाम से सर्वांगों से पृथ्वी पर गिर पड़ी।
कुछ समय के पश्चात् जब काली देवी कुछ आश्वस्त - स्वस्थ - सी - हुई तब खड़ी हुई और खड़ी होकर उसने भगवान् को वन्दन- नमस्कार किया । वंदन - नमस्कार करके ( रुंधे स्वर से ) इस प्रकार कहा- 'भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह अवितथ-असत्य नहीं है। भगवन् ! यह असंदिग्ध है । भगवन् ! यह सत्य है यह बात ऐसी ही है, जैसी आपने बतलाई है।' ऐसा कहकर उसने श्रमण भगवान् को पुनः वंदन - नमस्कार किया । वंदन - नमस्कार करके उसी धार्मिक यान पर आरूढ होकर, (जिस में बैठकर भगवान् के पास आई थी) जिस दिशा से आई थी वापिस उसी दिशा में लौट गई। गौतम की जिज्ञासा : भगवान् का समाधान
११. 'भंते' त्ति भगवं गोयमे (जाव) वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - 'काले णं भंते! कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगामं संगामेमाणे चेडएणं रन्ना एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववन्ने ?'
'गोयमा' इ समणे भगवं गोयमं एवं वयासी - ' एवं खलु गोयमा ! काले कुमारे तिहिं दन्तिसहस्सेहिं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पङ्कप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरगे दससागरोवमठिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववन्ने । '
'काले णं भंते! कुमारे केरिसएहिं आरम्भेहिं केरिसएहिं समारम्भहिं केरिसएहिं आरम्भ समारम्भेहिं केरिसएहिं भोगेहिं, केरिसएहिं संभोगेहिं केरिसएहिं भोगसंभोगेहिं केरिसएण वा असुभकडकम्मपब्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पङ्कप्पभाए पुढवीए जाव नेरइयत्ताए उववन्ने?'