Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
[१७
अभयस्स कुमारस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमन्ति। जेणेव सूणा तेणेव उवागच्छन्ति, अल्लं मंसं रुहिरं बत्थिपुडगं च गिण्हन्ति, गिण्हित्ता जेणेव अभए कुमारे, तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता करयल. तं अल्लं मंसं रुहिरं बत्थिपुडगं च उवणेन्ति।'
तए णं से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं रुहिरं कप्पणीकप्पियं करेइ, करेत्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं रहसिगयं सयणिज्जंसि उत्ताणयं निवज्जावेइ, निवज्जावेत्ता सेणियस्स उयरवलीसु तं अल्लं मंसं रुहिरं विरवेइ, विरवेत्ता बत्थिपुडएणं वेढेइ, वेढेत्ता सवन्तीकरणेणं करेइ, करेत्ता चेल्लणं देविं उप्पिं पासाए अवलोयणवरगयं ठवावेइ। ठवावेत्ता चेल्लणाए देवीए अहे समक्खं सपडिदिसिं सेणियं रायं सयणिज्जंसि उत्ताणगं निवज्जावे। सेणियस्स रन्नो उयरवलिमसाइं कप्पणिकप्पियाई करेइ, करेत्ता से य भायणंसि पक्खिवइ। तए णं से सेणिए राया अलियमुच्छियं करेइ, करेत्ता मुहुत्तन्तरेणं अन्नमन्नेण सद्धिं संलवमाणे चिट्ठइ। तए णं से अभयकुमारे सेणियस्स रन्नो उयरवलिमसाइं गिण्हेइ, गिण्हेत्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेल्लणाए देवीए उवणेइ।
तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो तेहिं उयरवलिमंसेहिं सोल्लेहिं (जाव) दोहलं विणेइ। तए णं सा चेल्लणा देवी संपुण्णदोहला एवं संमाणियदोहला विच्छन्नदोहला तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ।
___ (१४) इधर अभय कुमार स्नान करके यावत् अपने शरीर को अलंकृत करके अपने आवासगृह से बाहर निकला। निकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला (सभाभवन) थी और उसमें जहाँ श्रेणिक राजा था, वहां आया। उसने श्रेणिक राजा को निरुत्साहित जैसा देखा, यह देखकर वह बोला-तात ! पहले जब कभी आप मुझे आता हुआ देखते थे तो हर्षित यावत् सन्तुष्टहृदय होते थे, किन्तु आज ऐसी क्या बात है जो आप उदास यावत् चिन्ता में डूबे हुये हैं ? तात ! यदि मैं इस अर्थ (बात) को सुनने के योग्य हूँ तो आप बात को जैसा का तैसा, सत्य एवं बिना किसी संकोच-संदेह के कहिये, जिससे मैं उसका अन्तगमन करूँ अर्थात् हल करने का उपाय करूँ। ___अभयकुमार के इस प्रकार कहने पर श्रेणिक राजा ने अभय कुमार से कहा – पुत्र! ऐसी तो कोई भी बात नहीं है जिसे तुम सुनने योग्य नहीं हो, लेकिन बात यह है पुत्र! तुम्हारी विमाता चेलना देवी को उस उदार यावत् महास्वप्न को देखे तीन मास बीतने पर यावत् ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है कि जो माताएँ मेरी उदरावलि के शूलित आदि मांस से अपने दोहद को पूर्ण करती हैं वे धन्य हैं, आदि। लेकिन चेलना देवी उस दोहद के पूर्ण न हो सकने के कारण शुष्क यावत् चिन्तित हो रही है। इसलिये पुत्र! उस दोहद की पूर्ति के निमित्त आयों (उपायों) यावत् स्थिति को समझ नहीं सकने के कारण मैं भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित हो रहा हूँ।
श्रेणिक राजा के इस मनोगत भाव को सुनने के बाद अभयकुमार ने श्रेणिक राजा से इस भांति कहा-'तात! आप भग्नमनोरथ यावत् चिन्तित न हों, मैं ऐसा कोई जतन (उपाय) करूंगा कि जिससे