Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 122
________________ वर्ग ३ : चतुर्थ अध्ययन ] [ ७९ है, जिसे शीत-उष्ण, क्षुधा-तृषा (भूख-प्यास), चोर, सर्प, सिंह, डांस-मच्छर तथा वात-पित्त-कफ जन्य रोग आदि, परिषह उपसर्ग आदि किसी प्रकार की हानि न पहुंचा सकें, इस प्रकार सुरक्षित रखा है,) इत्यादि कहते हुये देवानन्दा के समान वह उन सुव्रता आर्या के पास प्रव्रजित हो गई और पांच समितियों एवं तीन गुप्तियों से युक्त होकर इन्द्रियों का निग्रह करने वाली यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी आर्या हो गई। विवेचन - भगवती सूत्र के शतक ९ उद्देश ३३ में देवानन्दा का चरित्र निरूपित किया गया है। देवानन्दा भगवान् महावीर से दीक्षित हुई थी। पहले भगवान् ८३ रात्रि देवानन्दा के गर्भ में रहे थे। अतः यह जानकर उसको वैराग्य हुआ। सुभद्रा आर्या की अनुरागवृत्ति ____४०. तए णं सा सुभद्दा अजा अन्नया कयाइ बहुजणस्स चेडरूवे संमुच्छिया (जाव) अज्झोववन्ना अब्भङ्गणं च उव्वट्टणं च फासुयपाणं च अलत्तगं च कङ्कणाणि य अञ्जणं च वण्णगं च चुण्णगं च खेल्लणगाणि य खजल्लगाणि य खीरं च पुष्पाणि य गवेसइ, गवेसित्ता बहुज़णस्स दारए वा दारिया वा कुमारे य कुमारियाओ य डिम्भए य डिम्भियाओ य, अप्पेगइयाओ अब्भङ्गेइ, अप्पेगइयाओ उव्वट्टेइ, एवं अप्पेगइयाओ फासुयपाणेएणं णहावेइ, पाए रयइ ओढे रयइ, अच्छीणी अञ्जेइ, उसुए करेइ, तिलए करेइ, दिगिंदलए करेइ, पन्तियाओ करेइ, छिज्जावई, खजुकरेइ, वण्णएणं समालभइ, चुण्णएणं समालभइ, खेल्लणगाई दलयइ, खजलगाइं दलयइ, खीरभोयणं भुञ्जावेइ, पुष्फाइं ओमुयइ, पाएसु ठवेइ, जंघासु करेइ, एवं उरूसु उच्छङ्गे कडीए पिठे उरसि खन्धे सीसे य करयलपुडेणं गहाय हलउलेमाणी हलउलेमाणी आगायमाणी आगायमाणी परिगायमाणी परिगायमाणी पुत्तपिवासं च धूयपिवासं च नत्तुयपिवासं च नत्तिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ। ४०. इसके बाद सुभद्रा आर्या किसी समय गृहस्थों के बालक-बालिकाओं में मूर्छित आसक्त हो गई-उन पर अनुराग-स्नेह करने लगी यावत् आसक्त होकर उन बालक-बालिकाओं के लिये अभ्यंगन, शरीर का मैल दूर करने के लिये उबटन, पीने के लिये प्रासूक जल, उन बच्चों के हाथपैर रंगने के लिये मेंहदी आदि रंजक द्रव्य, कंकण - हाथों में पहनने के कड़े, अंजन-काजल आदि, वर्णक - चंदन आदि, चूर्णक – सुगन्धित द्रव्य, (पाउडर), खेलनक- खिलौने, खाने के लिये खाजे आदि मिष्ठान्न, खीर, दूध और पुष्प-माला आदि की गवेषणा करने लगी। गवेषणा करके उन गृहस्थों के दारक-दारिकाओं, कुमार-कुमारिकाओं, बच्चे-बच्चियों में से किसी की तेल-मालिश करती, किसी के उबटन लगाती, इसी प्रकार किसी को प्रासुक जल से स्नान कराती, किसी के पैरों को रंगती, ओठों को रंगती, किसी की आंखों में काजल आंजती, ललाट पर तिलक लगाती, केशर का तिलक-विन्दी लगाती, किसी बालक को हिंडोले में झुलाती तथा किसी-किसी को पंक्ति में खड़ा करती, फिर उन पंक्ति में खड़े बच्चों को अलग-अलग खड़ा करती, किसी के शरीर में चंदन लगाती, तो किसी को शरीर में सुगन्धित चूर्ण लगाती। किसी को खिलौने देती, किसी को खाने के लिये खाजे

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