Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वेहल्ल कुमार को भेजा है।
गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार नहीं दिया है और न ही चेटक का उत्तर सुनकर कूणिक राजा ने दूसरी बार भी दूत को बुलाकर इस प्रकार कहा 'देवानुप्रिय ! तुम पुनः वैशाली नगरी जाओ। वहाँ तुम मेरे नाना चेटकराज से यावत् इस प्रकार निवेदन करो स्वामिन्! कूणिक राजा यह प्रार्थना करता है 'जो कोई भी रत्न प्राप्त होते हैं, वे सब राजकुलानुगामी - राजा के अधिकार में होते हैं। श्रेणिक राजा ने राज्य शासन करते हुये, प्रजा का पालन करते हुये दो रत्न प्राप्त किये थे सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार । इसलिये स्वामिन्! आप राजकुल-परम्परागत स्थिति - मर्यादा को भंग नहीं करते हुये सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को वापिस कूणिक राजा को लौटा दें और वेहल्ल कुमार को भी भेज दें।'
तत्पश्चात् उस दूत ने कूणिक राजा की आज्ञा को सुना । वह वैशाली गया और कूणिक की विज्ञप्ति निवेदन की 'स्वामिन्! कूणिक राजा ने प्रार्थना की है कि जो कोई भी रत्न होते हैं वे राजकुलानुगामी होते हैं, अतः आप हस्ती, हार और कुमार वेहल्ल को भेज दें।'
[ निरयावलिकासूत्र
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तब चेटक राजा ने उस दूत से इस प्रकार कहा 'देवानुप्रिय ! जैसे कूणिक राजा श्रेणिक राजा का पुत्र चेलना देवी का अंगज है, इत्यादि कुमार वेहल्ल को भेज दूंगा, यहां तक जैसे पूर्व में कहा, वैसा पुनः यहाँ भी कहना चाहिये ।' और उस दूत का सत्कार - सम्मान करके विदा किया ।
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तदनन्तर उस दूत ने यावत् चम्पा लौट कर कूणिक राजा का अभिनन्दन कर इस प्रकार निवेदन किया 'चेटक राज ने फरमाया है कि देवानुप्रिय ! जैसे कूणिक राजा श्रेणिक का पुत्र और चेलना देवी का अंगजात है, उसी प्रकार वेहल्ल कुमार भी । यावत् आधा राज्य देने पर कुमार वेहल्ल को भेजूंगा । इसलिये स्वामिन्! चेटक राजा ने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार नहीं दिया है और न वेहल्ल कुमार को भेजा है।'
कूणिक राजा की चेतावनी
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२७. तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते (जाव) मिसिमिसेमाणे तच्चं दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- 'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया, वेसलिए नयरीए चेडगस्स रन्नो वामेण पाएणं पायपीढं अक्कमाहि, अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणावेहि, पणावित्ता आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु चेडगं रायं एवं वयाही - हं भो चेडगराया, अपत्थियपत्थिया, दुरन्त० ( जाव ) परिवज्जिया, एस णं कूणिए राया आणवे पच्चप्पिणाहि णं कूणियस्स रन्नो सेयणगं अट्ठारसवंकं च हारं वेहल्लं च कुमारं पेसेहि, अहव जुद्धसज्जो चिट्ठाहि । एस णं कूणिए राया सबले सवाहणे सखंधावारे णं जुद्धसज्जे हव्वमागच्छइ ।'
तणं से दूर करयल०, तहेव (जाव) जेणेव चेडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल (जाव) वद्धावेत्ता एवं वयासी– 'एस णं, सामी, ममं विणयपणीवत्ती । इयाणिं कूणियस्स रन्नो आणत्ति - चेडगस्स रन्नो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमइ, अक्कमित्ता आसुरुत्ते कुंतग्गेण