Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन
८. 'जइ णं भंते समणेणं- भगवया (जाव) पुफियाणं पढमस्स अज्झयणस्स जाव अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं, भंते अज्झयणस्स पुफियाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते ?'
८. भदन्त! यदि श्रमण भगवान् ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह आशय प्रतिपादन किया है तो श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ है ? - जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा। सूर्य का समवसरण में आगमन
९. एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।समोसरणं।जहा चंदो तहा सूरो वि आगओ (जाव) नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी नगरी। सुपइढे नाम गाहावई होत्था अड्ढे जहेव अङ्गई (जाव) विहरइ। पासो समोसढो, जहा अङ्गई तहेव पव्वइए तहेव विराहियसामण्णे, (जाव) महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ (जाव) अंतं करेहिइ।
९. सुधर्मा स्वामी ने समाधान किया - आयुष्मन् जम्बू! भगवान् ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का अर्थ इस प्रकार कहा है -
उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। वहाँ गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा राज्य करता था। श्रमण भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ। जैसे भगवान् की उपासना के लिये चन्द्र आया था उसी प्रकार सूर्य इन्द्र का भी आगमन हुआ यावत् नृत्य-विधियां प्रदर्शित कर वापस लौट गया।
तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने सूर्य के पूर्व भव के विषय में पूछा। भगवन् ने प्रत्युत्तर दिया -
श्रावस्ती नाम की नगरी थी। वहाँ धन-वैभव आदि से सम्पन्न सुप्रतिष्ठ नामक गाथापति रहता था वह भी अंगजित के समान यावत् धनाढ्य एवं प्रतिभाशाली था। वहाँ पार्श्व प्रभु पधारे। अंगजित के समान वह भी प्रव्रजित हुआ और उसी तरह संयम की विराधना करके मरण को प्राप्त हो कर सूर्यविमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ। आयु क्षय होने के अनन्तर वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म ले कर सिद्धि प्राप्त करेगा यावत् सर्व दुखों का अंत करेगा।
१०.निक्खेवओ - तं एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं पुफियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ति बेमि।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥ १०. आयुष्मन् जम्बू! इस प्रकार से श्रमण यावत् मुक्ति संप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है। ऐसा मैं कहता हूँ।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥