Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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५८ ]
[ पुष्पिका
बम्हण्णगेसु सत्थेसु सुपरिनिहिए। पासे समोसढे। परिसा पज्जुवासइ।
१३. भगवान् ने प्रत्युत्तर में बताया – गौतम! उस काल और उस समय में वाराणसी नाम की नगरी थी। उस वाराणसी नगरी में सोमिल नामक माहण (ब्राह्मण) निवास करता था। वह धन-धान्य आदि से सम्पन्न-समृद्ध यावत् अपरिभूत था। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चार वेदों, पांचवें इतिहास, छठे निघण्टु नामक कोष का तथा सांगोपांग (अंग-उपांगों सहित) रहस्य सहित वेदों का सारक (स्मरण कराने वाला पाठक), वारक (अशुद्ध पाठ बोलने से रोकने वाला), धारक (वेद आदि को नहीं भूलने वाला, धारण करने वाला), पारक (वेदादि शास्त्रों का पारगामी), वेदों के षट्-अंगों में, एवं षष्ठितंत्र (सांख्यशास्त्र) में विशारद - प्रवीण था। गणितशास्त्र, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्दशास्त्र, निरुक्तशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र तथा दूसरे बहुत से ब्राह्मण और परिव्राजकों संबंधी नीति और दर्शनशास्त्र आदि में अत्यन्त निष्णात था।
पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे। परिषद् निकली और पर्युपासना करने लगी। .
१४.तएणं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स इमे एयारूवे अज्झथिए - ‘एवं पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वाणुपुव् ि (जाव) अम्बसालवणे विहरइ। तं गच्छामि णं पासस्स अरहओ अन्तिए पाउब्भवामि, इमाइं च णं एयारूवाइं अट्ठाइं हेऊई' जहा पण्णत्तीए। सोमिलो निग्गओ खण्डियविहूणो (जाव) एवं वयासी – 'जत्ता ते भंते ? जवणिजं च ते ?' पुच्छा। सरिसवया मासः कुलत्था ? एगे भवं ?' (जाव) संबुद्धे। सावगधम्म पडिवज्जित्ता पडिगए।
तए णं पासे णं अरहा अन्नया कयाइ वाणरसीओ नयरीओ अम्बसालवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं।
तए णं से सोमिले माहणे अन्नया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणयाए य मिच्छत्तपजवेहिं परिवड्ढमाणेहिं सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं परिहायमाणेहिं मिच्छत्तं च पडिवन्ने।
१४. तदनन्तर उस सोमिल ब्राह्मण को यह संवाद सुन कर इस प्रकार का आंतरिक विचार उत्पन्न हुआ - पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करते हुए यावत् आम्रशालवन में विराज रहे हैं। अतएव मैं जाऊँ और अर्हत् पार्श्व प्रभु के सामने उपस्थित होऊं एवं उनसे यह तथा इस प्रकार के अर्थ हेतु, प्रश्न, कारण और व्याख्या पूछ्।
तत्पश्चात् शिष्यों को साथ लिये बिना ही सोमिल अपने घर से निकला और भगवान् की सेवा में पहुँच कर उसने इस प्रकार पूछा -
भगवान् आपकी यात्रा चल रही है ? यापनीय है ? अव्याबाध है ? और आपका प्रासुक विहार हो रहा है ? आपके लिये सरिसव (सरसों) मास (माष - उड़द) कुलत्थ (कुलथी-धान्य) भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ? आप एक हैं ? (आप दो हैं ? आप अनेक हैं ? आप अक्षय हैं ? आप अव्यय हैं ? आप नित्य हैं ? आप अवस्थित हैं ? प्रभु ने उसे यथोचित उत्तर दिया) यावत् सोमिल संबुद्ध हुआ और श्रावक धर्म को अंगीकार १. एतद् विषयक प्रश्न और उनके उत्तर ज्ञाताधर्मकथांग, पंचम अध्ययन - शैलक पृ. १७४-१७८ (श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर) में देखिए।