Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
६६ ]
[ पुष्पिका
१९. तदनन्तर मध्यरात्रि के समय सोमिल ब्रह्मार्षि के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने सोमिल ब्रह्मार्षि से इस प्रकार कहा – 'प्रव्रजित सोमिल ब्राह्मण! तेरी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।' उस देव ने दूसरी
और तीसरी बार भी ऐसा ही कहा। किन्तु सोमिल ब्राह्मण ने उस देव की बात का आदर नहीं किया -- उसके कथन पर ध्यान नहीं दिया यावत् मौन ही रहे।
उस के बाद सोमिल ब्रह्मार्षि द्वारा अनादृत (उपेक्षा किया गया) वह देव जिस दिशा से आया था, वापिस उसी दिशा में लौट गया।
___ तत्पश्चात् कल (दूसरे दिन) यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने कावड़, भाण्डोपकरण आदि लेकर काष्ठमुद्रा से मुख को बांधा। बांधकर उत्तराभिमुख हो उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया।
२०. तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्मि पच्छावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवण्णे तेणेव उवागए। सत्तिवण्णस्स अहे कढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेई वड्ढेइ। जहा असोगवरपायवे जाव अग्गिं हुणइ, कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, तुसिणीए संचिट्ठइ।
तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउब्भूए। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं जाव जलन्ते वागलवत्थनियत्थे कढिणसंकाइयं गेण्हइ, गिणिहत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए।
२०. इसके बाद दूसरे दिन अपराह्न काल के अंतिम प्रहर में सोमिल ब्रह्मार्षि जहां सप्तपर्ण वृक्ष था, वहाँ आये। उस सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे कावड़ को रखा (कावड़ रखकर) वेदिका - बैठने के स्थान को साफ किया, इत्यादि जैसे पूर्व में अशोक वृक्ष के नीचे कृत्य किए थे , वे सभी यहाँ भी किए गये यावत् अग्नि में आहुति दी और काष्ठ मुद्रा से अपना मुख बांधकर बैठ गये।
तब मध्यरात्रि में सोमिल ब्रह्मार्षि के समक्ष पुनः देव प्रकट हुआ और आकाश में स्थित होकर अशोक वृक्ष के नीचे जिस प्रकार पहले कहा था कि तुम्हारी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है, उसी प्रकार फिर कहा। परन्तु सोमिल ने उस देव की बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। अनसुनी करके मौन ही रहे सावत् वह देव पुनः वापिस लौट गया। ... इसके बाद (तीसरे दिन)वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने सूर्य के प्रकाशित होने पर अपने कावड् उपकरण आदि लिये। काष्ठमुद्रा से मुख को बांधा और मुख बांधकर उत्तर की ओर मुख करके उत्तर दिशा में चल दिये।
. २१. तए णं से सोमिले तइयदिवसम्मि पच्छावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेई वढ्डेइ जाव गङ्गं महाणई पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ।वेइं रएइ, रइत्ता कट्ठमुदुदाए मुहं बंधइ बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ।