Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ निरयावलिकासूत्र
(१३) तब श्रेणिक राजा ने चेलना देवी की उक्त बात को सुनकर उसे आश्वासन देते हुये कहा – देवानुप्रिये! तुम हतोत्साह एवं चिन्तित न होओ। मैं कोई ऐसा जतन (उपाय) करूंगा जिससे तुम्हारे दोहद की पूर्ति हो सकेगी। ऐसा कहकर चेलना देवी को इष्ट (अभिलषित), कान्त (इच्छित), प्रिय, मनोज्ञ, मणाम, प्रभावक, कल्याणप्रद, शिव (सुखद), धन्य, मंगलरूप मृदु-मधुर वाणी से आश्वस्त किया। तत्पश्चात् वह चेलना देवी के पास से निकला। निकलकर जहाँ बाह्य सभाभवन था और उसमें जहाँ उत्तम सिंहासन रखा था वहां आया। आकर पूर्व की ओर मुख करके उस उत्तम सिंहासन पर आसीन हो गया। वह दोहद की संपर्ति के लिये आयों से उपायों से (यक्तियों-प्रयक्तियों से) औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी-इन चार प्रकार की बुद्धियों से बारंबार विचार करते हुए भी इसके आय-उपाय, स्थिति एवं निष्पत्ति को समझ न पाने के कारण उत्साहहीन यावत् चिन्ताग्रस्त हो उठा। अभयकुमार का आगमन : दोहदपूर्ति का उपाय
१४. इमं च णं अभए कुमारे पहाए (जाव) सरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छइ। सेणियं रायं ओहय. (जाव) झियायमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी - 'अन्नया णं, ताओ! तुब्भे ममं पासित्ता हट्ट (जाव) हियया भवह, किं णं, ताओ! तुब्भे ममं पासित्ता हट्ठ (जाव) हियया भवह, कि णं, ताओ! अज्ज तुब्भे ओहय. (जाव) झियाह ? तं जइ णं अहं, ताओ एयमट्ठस्स अरिहे सवणयाए, तो णं तुब्भे ममं एयमढं जहाभूयमवितहं असंदिद्धं परिकहेह, जा णं अहं तस्स अट्ठस्स अन्तगमणं करेमि।'
तए णं से सेणिए राया अभयं कुमारं एवं वयासी – 'नत्थि णं, पुत्ता ! से केइ अठे, जस्स णं तुमं अणरिहे सवणयाए। एवं खलु, पुत्ता ! तव चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स ओरालस्स (जाव) महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं वहुपडिपुण्णाणं, (जाव) जाओ णं मम उयरवलीमंसेहि सोल्लेहि य (जाव) दोहलं विणेन्ति। तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का (जाव )झियाइ। तए णं अहं पुत्ता ! तस्स दोहलस्स संपत्तिनिमित्तं बहूहिं. आएहिं य (जाव) ठिई वा अविन्दमाणे ओहय. (जाव) झियामि।'
तए णं से अभए कुमारे सेणियं रायं एवं वयासी – 'मा णं, ताओ तुब्भे ओहय. (जाव) झियाह, अहं णं, तहा जत्तिहामि, जहा णं मम चुल्लमाउयाए चेल्लणाए देवीए तस्स दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ' त्ति कटु सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं (जाव) वग्गूहि समासासेइ।
समासासित्ता जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अन्भिन्तरए रहस्सियए ठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे, देवाणुप्पिया ! सूणाओ अल्लं मंसं रुहिरं बत्थिपुडगं च गिण्हह।'
तए णं ते ठाणिज्जा पुरिसा अभएण कुमारेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ (जाव) पडिसुणेत्ता