Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
[१९
जाहे नो संचाएइ बहूहिं गब्भसाडएहिं य जाव गब्भविद्धंसणेहि य साडित्तए वा (जाव) विद्धंसित्तए वा, ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणी अकामिया अवसवसा अट्ठवसट्टदुहट्टा तं गब्भं परिवहइ।
(१५) कुछ समय व्यतीत होने के बाद एक बार चेलना देवी को मध्य रात्रि में जागते हुए इस प्रकार का यह यावत् विचार उत्पन्न हुआ - 'इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावलि का मांस खाया है, अतएव इस गर्भ को नष्ट कर देना, गिरा देना, गला देना एवं विध्वस्त कर देना ही मेरे लिये श्रेयस्कर होगा' (क्योंकि जन्म लेने और बड़ा होने पर न जाने यह पिता का या कुल का यह क्या अनिष्ट करेगा), उसने ऐसा निश्चय किया। निश्चय करके बहुत सी गर्भ को नष्ट करने वाली , गिराने वाली, गलाने वाली और विध्वस्त करने वाली औषधियों से उस गर्भ को नष्ट करना, गलाना, और विध्वस्त करना चाहा, किन्तु वह गर्भ नष्ट नहीं हुआ, न गिरा, न गला और न विध्वस्त ही हुआ।
तदनन्तर जब चेलना देवी उस गर्भ को बहुत सी गर्भ नष्ट करने वाली यावत् विध्वस्त करने वाली औषधियों से नष्ट करने यावत् विध्वस्त करने में समर्थ-सफल नहीं हुई तब श्रान्त, क्लान्त, खिन्न
और उदास होकर अनिच्छापूर्वक विवशता से दुस्सह आर्त ध्यान से ग्रस्त हो उस गर्भ को परिवहनधारण करने लगी।
बालक का जन्म : एकान्त में फेंकना
१६. तए णं सा चेल्लणा देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं (जाव) सोमालं सुरूवं दारगं पयाया। तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए इमे एयारूवे जाव समुप्पजित्था-'जइ जाव इमेण दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमसाई खाइयाई, तं न नज्जइ णं एस दारए संवड्ढमाणे अम्हं कुलस्स अन्तकरे भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं एयं दारगं एगन्ते उक्कुरुडियाए उज्झावित्तए' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं तुमं, देवाणुप्पिए, एवं दारगं एगते उक्कुरुडियाए उज्झाहि।'
१६. तत्पश्चात् नौ मास पूर्ण होने पर चेलना देवी ने एक सुकुमार एवं रूपवान बालक का प्रसव किया-उसे जन्म दिया।
. बालक का प्रसव होने के पश्चात् चेलना देवी को इस प्रकार का यह विचार आया-'यदि इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावलि का मांस खाया है, तो हो सकता है कि यह बालक संवर्धित-सवयस्क होने पर हमारे कुल का भी अंत करने वाला हो जाय! अतएव इस बालक को एकान्त उकरड़े (कूड़े-कचरे के ढेर) में फेंक देना ही उचित-श्रेयस्कर होगा।' इस प्रकार का संकल्प-विचार किया। संकल्प करके अपनी दास-चेटी को बुलाया, बुलाकर उससे कहा-'देवानुप्रिये! तुम जाओ और इस बालक को एकान्त में उकरड़े में फेंक आओ।'