Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ]
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बिठलाता, किसी को कंधे पर बैठाता, किसी को गंडस्थल पर रखता, किसी को मस्तक पर बैठाता, दन्तमूसलों पर बैठाता, किसी को सूंड में लेकर झुलाता, किसी को दांतों के बीच लेता, किसी को फुहारों से नहलाता और किसी-किसी को अनेक प्रकार की क्रीड़ाओं से क्रीड़ित करता - खेलता था।
तब चम्पा नगरी के अंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, महापथों और पथों में बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से इस प्रकार कहते, बोलते, बतलाते और प्ररूपित करते कि - देवानुप्रियो! अंत:पुर परिवार को साथ लेकर वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा अनेक प्रकार की क्रीड़ाएं करता है। वास्तव में वेहल्ल कुमार ही राजलक्ष्मी का सुन्दर फल अनुभव कर रहा है। कूणिक राजा राजश्री का उपभोग नहीं करता। पद्मावती की ईर्ष्या
२३. तए णं तीसे पउमावईए देवीए इमीसे कहाए लट्ठाए समाणीए अजमेयारूवे (जाव) समुप्पजित्था – ‘एवं खलु वेहल्ले कुमारे सेयणएणं गंधहत्थिणा (जाव) अणेगेहिं कीलावणएहिं कीलावेइ। तं एस णं वेहल्ले कुमारे रजसिरिफलं पच्चणुभवमाणे विहरइ, नो कुणिए राया। तं किं णं अम्हं रज्जेण वा (जाव) जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणगे गंधहत्थी नत्थि! तं सेयं खलु ममं कूणियं रायं एयमढं विनवित्तए' त्तिं कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता जेणेव कूणिए राया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल० (जाव) परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अञ्जलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेत्ति, वद्धावित्ता एवं वयासी- ‘एवं खलु सामी, वेहल्ले कुमारे सेयणएण गंधहत्थिणा जाव अणेगेहिं कीलावणएहिं कीलावहिं। तं किं णं अहं रज्जेण वा जाव जणवएण वा, जइ णं अम्हं सेयणए गंधहत्थी नत्थि ?' ___. तए णं से कूणिए राया पउमावईए एयमद्वं नो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं सा पउमावई देवी अभिक्खणं अभिक्खणं कूणियं रायं एयमद्रं विनवेइ। तए णं से कणिए राया पउमावईए देवीए अभिक्खणं अभिक्खणं एयमटठं विन्नविज्जमाणे अन्नया कयाइ वेहल्लं कुमारं सद्दावेइ, सदावित्ता सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं जायइ।
२३. तब (कूणिक की पत्नी) पद्मावती देवी को इस प्रकार के प्रजाजनों के कथन को सुनकर यह संकल्प यावत् विचार समुत्पन्न हुआ – “निश्चय ही वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती के द्वारा यावत् अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करता है। अतएव यह वेहल्ल कुमार ही सचमुच में राजश्री का फल भोग रहा है, कूणिक राजा नहीं। हमारा यह राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती न हो! इसलिये मुझे कूणिक राजा से इस विषय में निवेदन करना चाहिये।' पद्मावती ने इस प्रकार का विचार किया और विचार कर जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ आई और आकर दोनों हाथ जोड़, मुकुलित दस नखों पूर्वक शिर पर आवर्त करके, मस्तक पर अंजलि करके जय-विजय शब्दों से उसे बधाया और फिर इस प्रकार निवेदन किया- 'स्वामिन्! वेहल्ल कुमार