Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ निरयावलिकासूत्र
सेचनक गंधहस्ती से यावत् भांति-भांति की क्रीड़ाएँ करता है, तो हमारा राज्य यावत् जनपद किस काम का यदि हमारे पास सेचनक गंधहस्ती नहीं है । '
कूणिक राजा ने पद्मावती के इस कथन का आदर नहीं किया, उसे सुना नहीं अनसुना कर दिया, उस पर ध्यान नहीं दिया और चुपचाप ही रहा। तब वह पद्मावती देवी बार-बार इस बात का ध्यान दिलाती रही । पद्मावती द्वारा बार- बार इसी बात को दुहराने पर कूणिक राजा ने एक दिन वेहल्ल कुमार को बुलाया और सेचनक गंधहस्ती तथा अठारह लड़ का हार मांगा।
वेहल्ल कुमार का मनोमंथन
२४. तए णं से वेहल्ले कुमारे कूणियं रायं एवं वयासी 'एवं खलु सामी, सेणिएण रन्ना जीवंतेणं चेव सेयणए गंधहस्ती अट्ठारसवंके य हार दिने । तं जइ णं सामी, तुब्भे ममं रज्जस्स य (जाव) जणवयस्स य अद्धं दलयह, तो णं अहं तुब्भं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं दलयामि ।'
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तणं से कूणि राया वेहल्लस्स कुमारस्स एयमठ्ठे नो आढाइ, नो परिजाणइ, अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं जाय ।
तणं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स कूणिएणं रन्ना अभिक्खणं अभिक्खणं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं ( जायमाणस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए ४ समुप्पज्जित्था ) ' एवं खलु अक्खिविउकामे णं, गिहिउकामे णं, उद्दालेउकामे णं ममं कूणिए राया सेयणगं गंधहथिं अट्ठारसवंकं च हारं! तं (जाव ) ममं कूणिए राया (नो जाणइ ) ताव (सेयं मे) सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अन्तेउरपरियालसंपरिवुडस्स सभण्डमत्तोवगरणमायाए चम्पाओ नयरीओ पडनिक्खमित्ता वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कूणियस्स रन्नो अन्तराणि य छिद्दाणि य मम्माणि य रहस्साणि य विवराणि य पडिजागरमाणे विहरइ ।
तणं से वेहल्ले कुमारे अन्नया कयाइ कूणियस्स रन्नो अन्तरं जाणइ, सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अन्तेउरपरियालसंपरिवुडे सभण्डमत्तोवगरणमायाए चम्पाओ नयरीओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव वेसाली नयरी, तेणेव उवागच्छइ, वेसालीए नयरीए अज्जगं चेडयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ।
२४. तब वेहल्ल कुमार ने कूणिक राजा को उत्तर दिया – 'स्वामिन्! श्रेणिक राजा ने अपने जीवनकाल में ही मुझे यह सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। यदि स्वामिन् ! आप राज्य यावत् जनपद का आधा भाग मुझे दें तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दूंगा।'
कूणिक राजा ने वेहल्ल कुमार के इस उत्तर को स्वीकार नहीं किया। उस पर ध्यान नहीं दिया और बार-बार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को देने का आग्रह किया ।